अबु धाबी (संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी) में नवनिर्मित पहले हिन्दू मंदिर का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 फरवरी को मंदिर का उद्घाटन किया. 18 फरवरी से मंदिर के द्वार आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे. किसी इस्लामिक देश में हिन्दू मंदिर का बनना कल्पना सरीखा लगता है. अबु धाबी संयुक्त अरब अमीरात (united arab emirates) के सात अमीरात में से एक अमीरात (emirate) है. अबु धाबी में यह पहला हिन्दू मंदिर है, जिसे बीएपीएस (बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था) ने बनाया है. बीएपीएस एक वैश्विक गैर-धार्मिक, धर्मार्थ स्वयंसेवी संगठन है. संस्था द्वारा विश्वभर में 1100 से अधिक हिन्दू मंदिरों का निर्माण अब तक करवाया जा चुका है. यूएई के दुबई, शारजाह और रुवैस शहर में भी संस्था द्वारा बनवाए गए हिन्दू मंदिर हैं. (स्रोत – स्वामीनारायण सम्प्रदाय की वेबसाइट).
इस हिन्दू मंदिर के निर्माण की परिकल्पना 1997 में की गयी थी. इसका उद्देश्य दो संस्कृतियों को आपस में जोड़ना था. 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार आने के बाद, 9 अगस्त, 2015 में नरेंद्र मोदी, संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पर पहली बार गए और उनकी उपस्थिति में वहां की सरकार ने इस मंदिर के निर्माण की अनुमति दी. प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए यूएई सरकार का धन्यवाद भी किया. 2018 में अबु धाबी के युवराज शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने बीएपीएस को हिन्दू मंदिर के लिए 27 एकड़ भूमि आवंटित की. 20 अप्रैल, 2019 को बीएपीएस स्वामी नारायण संस्था के महंत ने वैदिक अनुष्ठान के साथ मंदिर का शिलान्यास किया. इससे पूर्व 2018 में यूएइ के दूसरे दौरे पर पीएम मोदी ने पूरे शाही परिवार और 250 से अधिक स्थानीय नेताओं की उपस्थिति में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. ज्ञापन में कहा गया था कि यह मंदिर एक पवित्र स्थान होगा, जो मानवता और सद्भाव का अद्भुत उदाहरण होगा. अबु धाबी की जनसंख्या लगभग 90 लाख है, जिसमें लगभग 20 लाख भारतीय हैं. 2019 में यहां हिन्दी को तीसरी आधिकारिक न्यायालयी भाषा का दर्जा मिला. सन् 2019 में ही इस मंदिर ने ‘मैकेनिकल प्रोजेक्ट्स ऑफ द ईयर’ का पुरस्कार जीता, इसके निर्माण पर 700 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आया है.
मंदिर की विशेषताएं
मंदिर के निर्माण में राजस्थान का विशेष योगदान है. मंदिर में लगे स्तंभों के साथ ही भगवान श्रीराम और भगवान गणेश की मूर्तियां राजस्थान के कारीगरों ने बनाई हैं. इसमें लगा गुलाबी पत्थर भी राजस्थान की सौगात है. कारीगर राम किशन सिंह ने बताया कि वह तीसरी पीढ़ी के मूर्तिकार हैं. उन्होंने मंदिर के कई हिस्सों पर नक्काशी का काम किया है. पांचवीं पीढ़ी के कारीगर बलराम टोंक ने कहा, ‘हमने बेहतरीन सफेद संगमरमर और गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग करके जटिल नक्काशी बनाई है, जो पवित्र ग्रंथों की कहानियों को बयान करती है. ये अब मंदिर के केंद्र बिंदु हैं.
उल्लेखनीय है कि मंदिर के खंभों एवं दीवारों पर मोर, हाथी, घोड़े, ऊँट, चंद्रमा आदि उकेरे गए हैं. मंदिर के अंदर पत्थर की नक्काशी भारतीय महाकाव्यों (रामायण, महाभारत), हिन्दू धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं और तथ्यों का वर्णन करती है. मंदिर, प्राचीन हिन्दू ‘शिल्प शास्त्र’ (वास्तुकला के संस्कृत ग्रंथ) के अनुसार बनाया गया है, जिसमें अरब, मिस्र, मेसोपोटामिया और भारतीय सभ्यताओं से चयनित कहानियों को दिखाया गया है. मंदिर को अरबी और हिन्दू संस्कृति का प्रतीक माना गया है. मंदिर के निर्माण में लोहे या स्टील का उपयोग नहीं किया गया है. यह विशाल मंदिर पूरी तरह से पत्थर से बनाया गया है. नींव को भरने के लिए फ्लाई ऐश का उपयोग किया गया है.
मंदिर में पिरामिड की आकृति वाले 12 गुंबद, 7 शिखर, 410 स्तंभ हैं. इस मंदिर की ऊंचाई 180 फीट, लंबाई 262 फीट और चौड़ाई 108 फीट है. मंदिर में लगभग 40,000 घन मीटर संगमरमर, 180 हजार घन मीटर बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है तथा मंदिर की नींव में भूकंपीय गतिविधियों पर दृष्टि रखने के लिए 100 सेंसर लगाए गए हैं.
मंदिर में एक बहुत ही आकर्षक झरने का भी निर्माण किया गया है, जो पवित्र भारतीय नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के स्रोत को दर्शाता है, मंदिर के बाहरी भाग में 96 घंटियां लगाई गई हैं.
मंदिर निर्माण के बाद से कई देशों के राजनयिक यहां पहुंच चुके हैं. जिनमें अमेरिका, जर्मनी, इजरायल, इटली, कनाडा, आयरलैंड, बहरीन, आर्मेनिया, बांग्लादेश, घाना, चाड, चिली, यूरोपीय यूनियन, फिजी, अर्जेंटीना, साइप्रस, चेक गणराज्य, डोमिनिकन गणराज्य, मिस्र, गाम्बिया के राजदूत और राजनायिक सम्मिलित हैं.