प्रज्ञा सिंह
चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का अभियान देश भर में जोर पकड़ रहा है. कोरोना महामारी के कारण विश्व के देशों का तो चीन के प्रति नजरिया बदला ही है, भारत भी समझ गया है कि ‘हिंदी-चीनी, भाई-भाई’ नहीं हो सकते. अब प्रश्न यह उठता है कि क्या चीनी सामान के बहिष्कार के लिए हमारी तैयारी पूरी है? क्या हम इस चुनौती से लड़ने के लिए तैयार हैं?
भारत चीन से ज्यादा सामान खरीदता है और बेचता कम है, चीन के साथ व्यापार घाटा सबसे ज्यादा है. इस व्यापार घाटे को शून्य पर लाना है और अब यही हमारा एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए. विश्व व्यापार की शर्तों के कारण भारत चीन के व्यापार पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता, परंतु चीनी वस्तुओं के बहिष्कार द्वारा हम तो व्यापार कम कर सकते हैं, और चीन को बड़ी आर्थिक चोट पहुंचाने के लिए हमें अपने निर्यात को बढ़ाना होगा. इसके लिए एक सुनियोजित दीर्घकालीन रणनीति बनानी होगी.
आत्मनिर्भर भारत – “लोकल फॉर वोकल” का नारा जमीन पर उतारना चाहिए
हालांकि आत्मनिर्भर भारत बनाने की पहल हो चुकी है, लेकिन उपभोक्ता को अधिक जागरूक बनाने के लिए ई-कॉमर्स नीति के तहत उत्पाद की गुणवत्ता के साथ-साथ उसके उत्पादन के संबंध में भी पूरी जानकारी उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराने चाहिए. यह भी आवश्यक है कि सरकार औद्योगिक क्लस्टर विकसित करे और उद्योगों को सहयोग दे ताकि उत्पादन की लागत कम हो और उत्पादकता में भी वृद्धि हो.
मेड इन इंडिया सामान की गुणवत्ता में सुधार जरूरी है
भारत सरकार का कौशल विकास कार्यक्रम पर्याप्त प्रभावशाली बनाने की आवश्यकता है. यदि इस कार्यक्रम को उद्योगों एवं बड़ी कंपनियों के साथ जोड़ दिया जाए तो यह एक कारगर कार्यक्रम बन सकता है. भारत में छोटे उद्योग हमेशा छोटे ही रह जाते हैं, क्योंकि उन्हें उचित माहौल एवं प्रोत्साहन नहीं मिल पाता. उन्हें स्टार्टअप के साथ जोड़कर विकास की एक नई दिशा दी जा सकती है. इन सभी बिंदुओं को अमल में लाया जाए तो निश्चित ही भारत की अर्थव्यवस्था अपने पटरी पर आने में सक्षम होगी.
चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन अब अपना रंग दिखाने लग गया है.कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स के तहत व्यापारियों ने करीब 3,000 ऐसी वस्तुओं की लिस्ट बनाई है, जिनका बड़ा हिस्सा चीन से आयात किया जाता है, लेकिन जिनका विकल्प भारत में मौजूद है या तैयार किया जा सकता है. व्यापारियों ने चीन से आयातित माल का बहिष्कार करने का बुधवार को एक अभियान शुरू किया है, जिससे चीन को कम से कम एक लाख करोड़ रूपयों का झटका लगेगा.
कन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स ने जिन वस्तुओं की सूची बनाई है, उनमें मुख्यत: इलेक्ट्रॉनिक गुड्स, एफएमसीजी उत्पाद, खिलौने, गिफ्ट आइटम, कंफेक्शनरी उत्पाद, कपड़े, घड़ियां और कई तरह के प्लास्टिक उत्पाद शामिल है.
गौरतलब है कि वर्ष 2019-20 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 81.6 अरब डॉलर का हुआ था, जिसमें से चीन से आने वाला माल यानि आयात करीब 65.26 अरब डॉलर का था.
भारत में चाइनीज ऐप को बैन करने के साथ अब ई-कॉमर्स कंपनियों (E-commerce companies) के लिए अब नियम सख्त कर दिए गए हैं. अगर किसी सामान के बारे में अपनी वेबसाइट पर यह जानकारी नहीं दी कि वह किस देश से आया है तो उन पर 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति को जेल की सजा भी हो सकती है. यही नहीं, सामान के निर्माता, मार्केटिंग कंपनी से जुड़े लोग भी इसी तरह के सजा के भागीदार होंगे. सरकार ने सभी ई-कॉमर्स कंपनियों को आदेश दिया है कि वे अपने उत्पादों पर यह उल्लेख करें कि उसका ‘कंट्री ऑफ ओरिजिन’ क्या है ताकि ग्राहकों को यह चुनने में मदद मिले कि वह देसी सामान का उपभोग करें या आयातित सामान का बहिष्कार करे.
बीएसएनएल के अलावा एक और सरकारी कंपनी ने चीन को बड़ा झटका दिया है. इंडियन रेलवे के डेडिकेटेड फ्राइट कॉरिडोर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने चीन के साथ अपना कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने का फैसला किया है. सभी हाइवे प्रोजेक्ट्स में भारत में चीनी कंपनियों को संयुक्त उद्यम पार्टनर के रूप में भी काम नहीं करने दिया जाएगा.
इस बहिष्कार एवं अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण चीन वैश्विक पटल पर अलग-थलग नजर आ रहा है. भारत विरोधी मानसिकता वाले लोगों की भावनात्मक अपीलों में ना फंस कर हमें यथासंभव चीनी सामान का बहिष्कार करना चाहिए, बाकी हमारे कामगारों, बुनकरों, शिल्पकारों और कुटीर उद्योगों को नई ताकत मिल सके. स्वाभाविक तौर पर चीनी सामान का बहिष्कार करने वाले लोग आज बाजार में भारतीय सामान की मांग कर रहे हैं यानि जब भारतीय सामान की मांग बढ़ेगी, तब हमारे कुटीर उद्योग मजबूत होंगे.
चीनी सामान के बहिष्कार के अभियान के 2 बड़े फायदे हैं. एक, चीन को सबक मिलेगा. दो, भारत के कुटीर उद्योग को ताकत मिलेगी. छोटे कारोबार से जुड़े लोगों की स्थिति सुदृढ़ होगी. भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. भारत में रोजगार बढ़ेगा. इसलिए आइए, ‘ चीनी सामान का बहिष्कार’ अभियान का हिस्सा बनते हैं.
लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय में एम.फिल. शोधार्थी हैं