• 75 वर्ष स्वतन्त्रता के हमने संपन्न किए, संपन्न कर रहे हैं, तो उस विस्मृत इतिहास का हमने स्मरण किया जिनकी कहानी सुनने मात्र से हृदय में स्फूर्ति का संचार होता है। ऐसे हजारों, सैकड़ों चरित्र हमारे सामने इस निमित्त उजागर हुए। सब जगह उसका उल्लेख मिला। हमारा स्मरण जागा, स्मृति जागी। वो सुन कर हमारे हृदय में एक स्वाभिमान जागा, देश के प्रति गौरव जगा, उत्साह भी जगा, उनके जैसे समर्पण का और अपना भी जीवन होना चाहिए ऐसी प्रेरणा भी जगी और कईं अपने देश के गौरव के प्रसंग भी आजकल हम देख रहे हैं. विश्व भर के आर्थिक संकट में, कोरोना के काल में सब में सबसे अच्छा किसने किया है तो भारतवर्ष ने किया है। किसके आगे बढ़ते हुए चरणों को नयनों को विस्तार कर और दांतों तले उंगली दबा कर दुनिया देख रही है वो हमारा भारत वर्ष है। हमको आनन्द होता है ये सुनकर। दुनिया के वरिष्ठ G 20 देशों की परिषद की अध्यक्षता भारत को मिली है. हमको उसका गौरव है
• हमारे देश को वास्तव में जिस जागृति की आवश्यकता थी उस जागृति को लाने का प्रयास हो रहा है तो जन- सामान्य आनंदित होता है। स्वामी जी ने जैसे कहा जिसको जो देखना है वो वही देखता है, लेकिन हमारा सामान्य जन क्या देखता है? वो देखता है कि भारत की कीर्ति हो रही है. भारत आगे बढ़ रहा है। अन्दर भी कईं बाते ठीक हो रही, कईं अभी नहीं हुई हैं होगी। किसी को लगता है कि ऐसे ही होगी, किसी को लगता है कि नहीं दूसरा कुछ होना चाहिए ये चलते रहता है, परंतु ऐसी जैसे गर्मी में वर्षा की बौछारें सुखद लगती हैं, स्वतंत्रता के 75 वर्ष के बाद इस प्रकार की और सुखद भावनाओं का अनुभव हम जैसा कर रहे हैं, वैसे ही चिंतित करने वाला दृश्य भी हमे परिस्थिति में मिल रहा है।
• इस समय देश में कितनी जगह कितने प्रकार के कलह मचे। भाषा को लेकर विवाद, पंथ संप्रदायों को लेकर विवाद, मिलने वाली सहूलियतों के लिए विवाद और विवाद नही केवल तो इसका इस हद तक उसका बढ़ना कि हम आपस में ही हिंसा करने लगे. अपने देश की सीमाओं पर हमारी स्वतंत्रता पर बुरी नजर रखने वाले शत्रु बैठे हैं उनको हम हमारा बल नही दिखा रहे हैं हम आपस में ही लड़ रहे हैं और हम ये भूल रहे है कि हम एक देश हैं. हम एक जन हैं ये भी दिखाई देता है.
• अच्छा केवल यही होता तो जा-जा के प्रबोधन करके इसको ठीक करते, लेकिन इसको हवा देने वाले भी लोग हैं. राजनीति चलती है. हमारा प्रजातंत्र है. उनेक दल, अनेक विचार रहेंगे, सत्ता के लिए स्पर्धा रहेगी रहती यही पद्धति है, परंतु उसकी भी एक मर्यादा होती है. ये सारे देश के राजनीतिक दल है. एक-दूसरे पर टीका-टिपणी उनको करनी ही पड़ती है करें, जितनी अधिक कर सकते है करें, परन्तु लोगों में विसंवाद उत्पन्न न हो, अपने देश के गौरव को कोई लाच्छन ना लगे, आपस में लड़ाई-झगड़ों को हवा ना लगे, इतना विवेक तो रखना चाहिए
• दोष किसका इसके पीछे की चर्चा करना भी व्यर्थ है. अपने देश की एकता. अखण्डता एकात्मता को कायम रखना ये हम सबका प्रयास होना चाहिए और अगर उसमें कुछ कमी है तो सबने मिलके ठीक करनी चाहिए. केवल दोषारोपण से काम नही चलने वाला, लेकिन ऐसा होता हुआ दिखाई देता है. थोडी बहुत हमारे मन में भी बीच के काल में जो भेद आए, जात-पात के भेद आए, पंथ संप्रदाय को लेकर भेद आए, कुछ संप्रदाए बाहर से आए उनके लाने वाले जो बाहर से थे. उनके साथ हमारी लड़ाईया हुई, लेकिन अब वो बाहर वाले तो चले गए सब अन्दर वाले हैं. तो उन बाहर वालों का सम्बन्ध भूलकर इस देश में रहना और अभी भी वहां के प्रभाव में यहां जो लोग हैं वो बाहर वाले नहीं वो अपने ही हैं. ये समझ के उनके साथ व्यवहार करना अगर उनके सोचने में कोई कमी है तो उनका योग्य प्रबोधन करना हम सबकी जिम्मेवारी है,
• कोरोना वायरस का अपना क्या सामार्थ्य है वो है, लेकिन हमारी अपनी इम्युनिटि कम थी ये भी एक कारण रहता है. ऐसे देश के अन्दर नहीं तो देश के बाहर तो भारत को नीचा दिखाना चाहने वाले शत्रु तो हैं. अपने स्वार्थ के लिए भारत को दबाये रखने वाले आपस में झगड़ता लड़ता रखना चाहने वाले लोग हैं. उनको अवसर मिलता है वो इसको और चौड़ा करने के लिए तरह-तरह के कुचक्र रचते हैं उसको भी हम महसूस करते हैं.
• ये पूरा भारत ये मेरी मातृभूमि है उस मातृभूमि के भक्ति में हम समरस हो गए. तो मेरी अलग पहचान चली जाएगी किसको चाहिए अलग पहचान, है नहीं हमारी अलग पहचान, भारत वर्ष में ही हम सबकी विशिष्ट पहचाने सुरक्षित हैं. भारत के बाहर वहां की मूल पहचान से आप अगर अलग हैं तो आपका वहां सुख से रह पाना मुश्किल है. ये अनुभव है वर्तमान भी है. पूरे दुनिया में इस्लाम का आक्रमण हुआ. स्पेन से मंगोलिया तक छा गया. धीरे-धीरे कार्यक्रम में वहां के लोग जागे, उन्होंने आक्रमणकारियों को परास्त किया तो अपने कार्यक्षेत्र में इस्लाम सिकुड़ गया. सबने सब बदल दिया. अब विदेशी तो यहां से चले गए, लेकिन इस्लाम की पूजा कहां सुरक्षित चलती है यहीं से सुरक्षित चलती है. कितने दिन हुए, कितने शतक हुए ये चल रहा है सहजीवन इसको न पहचानते हुए और आपस के भेदों को ही बरकरार रखने वाली नीति चलाना. ऐसा करेंगे तो कैसा होगा ।
• ये समझना आवश्यक है. ये मातृभूमि हमारी है. ये भूलकर हमारी पूजाएं अलग-अलग हैं दो चार विदेशी भी हैं फिर भी एक समाज के नाते हम इस देश के हैं हमारे पूर्वज इस देश के पूर्वज हैं. इस वास्तविकता को हम क्यों नहीं स्वीकार कर पा रहे हैं. हमारी जो विशिष्टता है विविधता है वो हमारे अलगाव का कारण बनती नहीं, बाकि कि दुनिया में बनती है, लेकिन हमारे देश में प्राचीन समय से सबको समन्वय के साथ-साथ चलाने वाली संस्कृति विद्धमान है. उस संस्कृति को हम भूल गए है.
• ये जो विश्व में उदार संस्कृति है सब विविधताओं का स्वीकार करना, स्वागत करने वाली संस्कृति है उसके संस्कारों पर चलना. उसके संस्कारों में सत्य है. निगेशन से काम नहीं होता, जात-पात में भेद नहीं था ऐसा कभी-कभी समर्थन कुछ लोग करते हैं ऐसा नहीं है हुआ है हमारे देश में ये अन्याय, पूर्वजों की कीर्ति हम वहन करते हैं पूर्वजों का ऋण भी हमको चुकाना पड़ेगा. इस भावना से हम विचार करें. होंगे हमारी पूजा बाहर से आई, हमको आदत हो गई, हमको अच्छी भी लगती होगी, नहीं छोड़ेंगे ठीक है लेकिन देश तो हमारा अपना है. पूर्वज तो हम बदल नहीं सकते इस देश की संस्कृति हमारी संस्कृति है ये सब हमको जोड़ने वाला मसाला है. अपनी छोटी पहचान के मिट जाने के भ्रम पूर्व डर से इससे क्यों अलग रहना, वास्तव में आज इसको हिंदू नाम मिला है. ये तो सारा वैश्विक है. जिसको धर्म धर्म हम कहते हैं वो तो सारे विश्व के लिए जो मानव धर्म है वही है. वो बंधुभाव, सत्य, करुणा, शुचिता और तपस्या पर आधारित है.
• भारतवर्ष के ह्रास का कारण यही है. पहले हम स्वत्व भूल गए. हम विभाजित हो गए. हमारा बल चला गया. संगठन का बल नष्ट हो गया. हम भी विघटित हो गए. आपस में लड़ने लगे. एक-दूसरे को बड़े-नीचे ऊंचे मानने लगे. इसके कारण जिनकी हिम्मत नहीं थी हिंदूकुश के पार आने की सब आक्रमण उधर से हुए. एक तांता चला आक्रमणों की परंपरा का, लेकिन बल पूरा गया नहीं था इसलिए शुरू के जो आक्रमक आए, आए रहे कुछ दिन तक, राज्य का उपभोग किया अब उनका नामोनिशान नहीं अब इसलिए लोग डरते हैं कि हम इनके साथ हो जाएंगे तो ये हमको खा जाएंगे. हम तो किसी को खाने वाले हैं नहीं, हम तो विविधताओं का उत्सव मनाने वाले हैं और अभी तक का इतिहास साक्षी है जिस किसी विविधता का प्रवेश भारत में हुआ उसकी सुरक्षा यहां हुई है. सारी दुनिया में मस्तक रखने को जगह नहीं मिली अकेले भारत था जिसने आश्रय दिया. पूछिए यहूदियों को पूछिए पारसियों को
• हम अपने स्वत्व के साथ सब लोग फिर से मिलकर रह सकते हैं. वो हमारा भारत का स्वत्व हमारी संस्कृति, हमारी मातृभूमि भक्ति, हमारे पूर्वजों के जीवन के उच्च आदर्श, ये हम सबका हैं जो भारत का अपने आप को मानते हैं. भारतवर्ष के साथ हमारा सौदा नहीं है. भारत में रहने से हमको ये मिलेगा. वो मिलेगा इसलिए हम भारत में ऐसा नहीं है.
• भारतवर्ष के साथ हमारा संबंध है. जैसे अंगों का शरीर का संबंध रहता है शरीर से प्राण निकल गए अंग अपनेआप मर जाते हैं. वैसा हमारा संबंध है. ऐसी उत्कृष्ट भक्ति भारत में लेकर भारत के प्रति लेकर हम लोग इन सब विविधताओं के साथ आपस में मिलजुल कर रह सकते हैं. वही रास्ता है. उस स्वा के आधार पर अपने जीवन की पुनर्रचना होनी चाहिए. उसका के आधार पर ही संविधान ने जिसे इमोशनल इंटीग्रेशन कहा गया है. वो इंटीग्रेशन आ सकता है हमारे एंटीग्रेशन का इमोशन क्या है यही है. हम इतने प्रकार के हैं, लेकिन सदियों से हम एक हैं ये आज की बात नहीं है 1947 के बाद आई कल्पना नहीं है.
• फिर उस स्वत्व को याद करना स्वामी जी ने बहुत थोड़े में यो पूरा विषय बता दिया है और इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1925 से ये करता है क्योंकि राष्ट्र के लिए अभी जोशीमठ जैसी घटना हो रही है भूचाल आते हैं, सारी दुनिया में हो रहा है, क्यों हो रहा है अगर भारत में ही केवल गलती हुई तो भारत में होता, लेकिन सारी दुनिया में होता है कारण क्या है.पर्यावरण के प्रति एक अधूरी दृष्टि लेकर विश्व आज तक चला. अब वो दृष्टि तो बदल रही है और ये ज्ञान तो प्राप्त हुआ है हमारे पास तो पहले था.
• 75 वर्षों में ये स्वतंत्र देश जिसके बारे में चर्चिल महाशय ने कहा था कि स्वतंत्र होने के बाद आपस में लड़के खत्म हो जाएंगे. शायद फिर से हमको न्योता देंगे कि आओ राज करो. उनकी भविष्यवाणी को हमने असत्य सिद्ध कर लिया. अभी तक चले. इतनी विविधता होने के बाद भी यहां प्रजातांत्रिक व्यवस्था सब चुनौतियों को पार करके चल रही है। इतना ही नहीं तो अब हम विश्व के सिरमोर देश में आ गए हैं और केवल सिरमोर है इतना नहीं, तो विश्व हमसे नए रास्ते की अपेक्षा रखता है ये सब हुआ है. तो हमारे देशवासियों के परिश्रम के कारण ही हुआ है वो क्षमता हममें है
• हम सब ऊपर से विविध दिखते हैं, लेकिन अंदर से हम सब एक हैं भारतवासी हैं भारत माता के पुत्र हैं भारतीय संस्कृति की हिंदू संस्कृति की विरासत हमारी है और यह भारत जननी ये हमारी मातृभूमि है.
• यहीं से हमको रस प्राप्त होता है यही रस हम सब की नस-नस में दौड़ता है खून बनकर, उसको ध्यान में रखना और संवेदना, सहयोग, परस्पर विश्वास और इन बातों पर श्रद्धा रखकर चलना यही एकमात्र रास्ता है. हम ये करेंगे तो आप क्या करेंगे, आप ये देंगे तो हम क्या दें ऐसे सौदे से काम नहीं होगा. सबको कुछ ना कुछ छोड़ना पड़ेगा. एकतरफा छोड़ने की तैयारी से आत्मीयता नहीं बनती, दोस्ती नहीं बनती और इसलिए सबको कुछ देना पड़ेगा. सबको कुछ छोड़ना पड़ेगा, देश के लिए त्याग करना पड़ेगा. उसके लिए आदत चाहिए.
• पिछले 100 वर्षों में जिन रास्तों का उत्थान हुआ और पतन भी हुआ उनके उत्थान-पतन के सत्यता को देखिए. उसका अध्ययन कीजिए. उपलब्ध है ग्रंथ लिखे गए हैं तो आप को ध्यान में आएगा कि उस देश की सामान्य जनता अपने राष्ट्र के लिए जीना-मरना जब सीख गई आपस के भेद और स्वार्थों को छोड़कर राष्ट्रहित में सब जग एक बने, तब उस राष्ट्र का उत्थान हुआ ।
• छत्रपति महाराज शिवाजी का राज्याभिषेक था 350 वां वर्ष 350वां दिवस है. शिवाजी महाराज ने क्या किया. यही किया उन्होंने स्पष्ट रूप से इस राष्ट्र के स्वत्व की घोषणा की और कहा कि यहां हिंदवी स्वराज की स्थापना हम करेंगे। करेंगे साथी जुटे, करेंगे उन्होंने साथियों को बताया कुछ क्या आपको ये मिलेगा, वो मिलेगा. कितने लोगों के बलिदान हुए. शिवाजी महाराज के बाद संभाजी महाराज ने स्वयं का बलिदान दिया. उसके बाद स्वराज लड़ता रहा. राजा दूसरी जगह दूर जाके रह रहा है. वहां से लड़ाई चल रहा है. राजमाता और राज पुत्र परकियों के कैद में बंद है. सेनापति नहीं है. सेना नहीं है, खजाना नहीं है, गढ़ किले सारे-सारे शत्रु ले रहा है. ऐसी अवस्था में 30 साल सामान्य लोगों ने स्वराज के लिए संघर्ष किया और उसको डुबाने के लिए जो आए थे उनकी कबर महाराष्ट्र में दफन हुई । ये इतिहास है ये प्रेरणा शिवाजी महाराज ने जगाई. उन्होंने संस्कार दिया. उसके लिए अपने पुराने संस्कारों को जगाया, पुरानी मूल्यों को जगाया, गो बध को रोका, मातृभाषा में राज्य के व्यवहार शुरू किया, अपने देश कि नेवी ही नहीं थी आधुनिक काल में यानी आधुनिक इतिहास में पहली बार शिवाजी महाराज के कारण भारत की नेवी बनी।
• औरंगजेब ने काशी का मंदिर तोड़ा शिवा जी ने पत्र लिखा उन्होंने, उन्होंने कहा कि हिंदू-मुस्लिम दोनों को भगवान ने उत्पन्न किया है. जो राज्य करता है उसका ये कर्तव्य होता है दोनों को समान देखें और अन्याय ना करें तुम ऐसा करोगे तो मेरी तलवार लेकर मुझे उत्तर में आना पड़ेगा. इस देश के प्रति नाता रखने वालों को उन्होंने सुरक्षित किया. वही हिंदवी स्वराज है उसी को हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं.
• डॉक्टर हेडगेवार कहते थे हम तो तत्वों को गुरु मानते हैं व्यक्ति को मानते नहीं है, लेकिन सामान्य व्यक्ति को निर्गुण निराकार की उपासना करना कठिन होता है तो कोई सगुण आदर्श अगर स्वयंसेवकों को चाहिए तो मेरा मत है कि पुराण काल में श्री हनुमान जी और आधुनिक काल में छत्रपति शिवाजी महाराज हमारे लिए सर्वांगीण आदर्श है. ऐसे महापुरुष को याद करते समय हमको ये संकल्प भी करना पड़ेगा कि उनके आदर्शों पर चलकर हम अपने राष्ट्रीय परंपरा के अनुसार इस भारत को ऐसे प्रकट करें, उद्दित करें, विश्व गुरु बनाएं, सारी दुनिया की जो आज की समस्याओं का जो उत्तर दे सकेगा, लेकिन उस संकल्प की पूर्ति के लिए हमको तपस्या करनी पड़ेगी.
• 1925 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यही तपस्या चल रही है. समाज जीवन के अन्यानअन्य अंगों में उस तपस्या से तपोपूत होकर निकले कार्यकर्ताओं की करणी के बहुत अच्छे-अच्छे परिणाम समाज देख रहा है. संघ को कुछ नहीं चाहिए, संघ को श्रेय भी नहीं चाहिए. ये सारा समाज को साथ लेकर स्वयंसेवकों ने किया. समाज ने किया स्वयंसेवक साथ रहे. पूरा समाज जब अपना कृर्तृत्व देश हित में समर्पित कर, भेद और स्वार्थों को भूलकर, समय के प्रवाह में और नये-नये प्रवाह जो आकर मिले उनको आत्मसात करके आगे चलेगा.
• समाज जीवन की सारी विविधता अपनी विविधता पर ठीक से चलते हुए सभी विजेताओं का सम्मान गौरव करेगी और इस राष्ट्र की उस सांस्कृतिक परंपरा को इस मातृभूमि के प्रति अपनी भक्ति को और उन पूर्वजों की आदर्श परंपरा को उनके मूल्यों को मन से स्वीकार करके चलेगी, तब वह विश्व गुरु भारत अगर ये काम हमने जल्दी किया तो इसी देह में इन्हीं आंखों से देखेंगे और तब अपने प्रयोग कर थक चुकी दुनिया को शांति और सुख का नया रास्ता प्राप्त होगा दूसरा उपाय नहीं है।
• ये संघ का प्रचार नहीं बोल रहा है ये 98 वर्ष का समाज जीवन का अनुभव बोल रहा है. इसका विचार करना और संघ के केवल दर्शक हित चिंतक ना बने रहते हुए, संघ के कार्य में प्रत्यक्ष योगदान करते हुए एक व्यूह देश के लिए बनाकर चलने वाले समाज जीवन का अंग बनना, ये आप करें ऐसा एक अनुरोध इस निमित्त आपके सामने रखता हूँ