इल्तुतमिश से लेकर औरंगजेब तक “न यवनों स्पर्श:” अर्थात कोई यवन जिन्हें स्पर्श तक न कर पाया, उनकी सवारी आज भला कौन ही रोक सकता है? लेकिन उस नौजवान ने जो कहा वह आवेश में नहीं कहा, वह एक भभक है, एक चिंगारी है जो राख के नीचे दबी हुई है, राख थोड़ी सी हटी और उसके मुंह से अंगार बरस गए.
- चार बरस पहले कोरोना का प्रकोप था, उज्जैन में कुछ सेवाकार्य में लगे कार्यकर्ता थक कर क्षिप्रा मां के तट रामघाट चले जाते थे, वहां वे मछलियों को आटे की गोलियां डाल रहे थे. उन्हें कुछ मुस्लिम भी वहां दिखे, वे मुस्लिम अपने मित्र को फोन लगाकर कह रहे थे, “मौलाना घाट” पर सब यार बैठे हैं, आ जा. “रामघाट, मौलाना घाट हो चुका है”
जहां भगवान महाकाल सवारी के दौरान स्नान करते हैं. यह भी स्मरण रहे कि “मौलाना घाट” केवल नाम भर ही नहीं है, मौलाना घाट बनाने की तैयारी है, रामघाट का छह महीने पुराना “दरगाह निर्माण” का विवाद उसका “ट्रेलर” था.
- आप में से कई होंगे जो रात्रि को 10 बजे बाद रामघाट पर शांति की चाह में बैठने जाते होंगे और आपको कुछ अभद्र भाषा बोलते हुए, छेड़खानी करते हुए कुछ युवक दिख ही जाते होंगे और आप या तो कुछ प्रतिकार करते होंगे या मौन होकर लौट आते होंगे. यह उसी रणनीति का हिस्सा है कि आप रात्रि में रामघाट जाने से डरें और रामघाट नशे का अड्डा बन जाए, कुछ समय बाद दिन में भी जाने से डरने लगें.
उज्जैन में महाकाल की सवारी नहीं निकले, इसके प्रयास दशकों से चल रहे हैं. उसके लिए “बेगमबाग” बसाया जाता है. बेगमबाग महाकाल जाने वाले मुख्य मार्ग पर बसाया जाता है और फिर कांवड़ियों, श्रद्धालुओं और यात्राओं पर किस तरह के हमले होते हैं, पता ही है. यदि महाकाल मंदिर के पास शिशु मंदिर, भारत माता मंदिर और महाकाल भक्त निवास नहीं बनता तो बेगमबाग महाकाल तक आ जाता, सुना है यह सब महाकाल मंदिर को संरक्षित रखने के लिए दूरगामी योजना से बने हैं.
- पिछली सवारी में कुछ मित्र उज्जैन गए थे, दर्शन करने. उन्होंने महाकाल चौक से देवास गेट जाने के लिए ऑटो वाले से बात की, ऑटो वाले ने अभिवादन में जय श्री महाकाल कहा, ऑटो पर भी जय महाकाल लिखा हुआ था, लेकिन जब वे अंदर बैठे तो ड्राइवर की ड्रेस वाला बेच लगा हुआ था, जिस पर “राजा खान” लिखा हुआ था.
- उज्जैन में महाकाल मंदिर के आसपास की होटल, लॉज की सूची देखी ही होगी, जिनके नाम रुद्राक्ष, शिखर, शिप्रा, कलश जैसे हिन्दू प्रतीकों पर है. “रिसेप्शन” पर महाकाल के चित्र भी है, किंतु उनके मालिक “मुस्लिम” ही है.
- जो गेबी हनुमान जी के दर्शन के लिए जाते हैं, वे यह भी जानते हैं कि जिस दिन मुस्लिम समाज में ठान लिया, उस दिन हिन्दू गेबी हनुमान के दर्शन नहीं कर पाएगा, क्योंकि मंदिर “मुस्लिम बस्ती” से घिर गया है. जैसे इंदौर का खजराना गणेश मंदिर.
- उज्जैन का गोपाल मंदिर, जो हरिहर मिलन के लिए प्रसिद्ध है. वहां श्री गोपाल मंदिर से बड़ी “मीनारें” दिखती हैं, उस चौक पर अधिकांश दुकानें किनकी हैं, जाकर देखकर आइये.
- महाकाल चौक जहां से महाकाल की सवारी पुनः मंदिर में प्रवेश करती है, वहां से देवास गेट तक की बसाहट किस समुदाय की है?
- रामघाट से निकलकर सवारी “कार्तिक चौक” में जाती है, कार्तिक चौक में केवल सड़क के घर हिन्दुओं के बचे हैं. रामानुजकोट से तो पहली सवारी पर पथराव के वीडियो भी आए थे.
उस लड़के ने जो कहा, वह बैठकों में आने वाली योजनाओं का एक हिस्सा है. किंतु यह उसे गोपनीय रखना था, वह रख नहीं पाया. उसके मुख पर वाग्देवी विराज गई, इसलिए कि समाज सचेत हो जाए.
उज्जैन मध्यभारत की आध्यात्मिक राजधानी बनी रहे. अन्यथा प्रयाग के इलाहाबाद होने और भोज की नगरी को नवाबों का शहर होने का इतिहास, वर्तमान में उज्जैन में घटे इसकी पूरी योजना है.
इसलिए PFI अपना स्थापना दिवस कहीं और मना पाए या नहीं, उज्जैन के नागोरी मोहल्ले में, महिदपुर में जरूर मना लेती है.
किंतु हिन्दुओ का सोया स्वाभिमान भी जाग रहा है, उसे प्रशासन पर विश्वास है. इसलिए वह कह रहा है #महाकाल_सवारी_नहीं_रुकेगी, महाकाल की सवारी भला कौन ही रोक सकता है?
अन्यथा वह यह भी कह सकता था – #ताजिये_निकाल_कर_दिखा, सरकार, रेवड़ियां बांटने के अलावा हिन्दू आस्था का भी ध्यान रख ले, यही आग्रह है.