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जयपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय ने अजमेर-92 फिल्म पर रोक लगाने से इंकार करते हुए फिल्म पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया. जस्टिस इन्द्रजीत सिंह ने यह आदेश अंजुमन मोइनिया, फखरिया चिश्तिया खुद्दाम ख्वाजा साहब, दरगाह शरीफ की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के पश्चात दिया. अजमेर-92 फिल्म अजमेर में स्कूल और कॉलेज जाने वाली दर्जनों लड़कियों के साथ हुए दुष्कर्म व ब्लैकमेलिंग की घटना पर आधारित है. इस मामले में आरोपियों को सजा हो चुकी है.
याचिका के जवाब में भारत सरकार के एएसजी आरडी रस्तोगी ने कहा कि यह याचिका अदालत में चलने योग्य नहीं है. वहीं, सर्वोच्च न्यायालय से भी मामले (अजमेर दुष्कर्म साजिश) का निस्तारण होकर अभियुक्तों को सजा हो चुकी है. इसके अलावा सिनेमेटोग्राफी एक्ट की धारा 6 के तहत केन्द्र सरकार को ऐसे मामलों में पुनरीक्षण करने की शक्ति प्राप्त है. याचिकाकर्ता यह बताने में भी विफल रहा है कि फिल्म के प्रसारण से उनके व्यक्तिगत हितों को कैसे नुकसान होगा. इसलिए याचिका खारिज की जाए.
याचिका में कहा गया था कि फिल्म के ट्रेलर में घटना को सिर्फ अजमेर दरगाह और चिश्ती समुदाय के लोगों से जोड़कर दिखाया जा रहा है. ट्रेलर देखने से लगता है कि घटना अजमेर दरगाह में हुई है. ऐसे में जुलाई में रिलीज हो रही फिल्म का सिनेमाघरों और ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रदर्शन रोका जाए.
याचिका में मांग की गई थी कि फिल्म के रिलीज होने से पहले उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया जाए. जिसमें केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड, याचिकाकर्ता और उसके वकील को शामिल किया जाए. यह कमेटी सुनिश्चित करे कि फिल्म के दृश्यों और संवाद में दरगाह शरीफ के साथ ही कोई अपमानजनक व आपत्तिजनक सामग्री को नहीं दिखाया गया है.
फिल्म या उसके प्रमोशन में दरगाह, दरगाह की रस्मों और चिश्ती सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित किसी भी चीज को गलत रूप से नहीं दिखाया गया है व दरगाह की छवि को धूमिल भी नहीं किया गया है.
दोनों पक्षों को सुनने के पश्चात न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया. जस्टिस इंद्रजीत सिंह की एकलपीठ ने अंजुमन कमेराजस्थानटी की याचिका को खारिज़ करते हुए याचिकाकर्ता को सेंसर बोर्ड में दायर रिप्रजेंटेशन में अपनी बात रखने के लिए कहा.