सत्य के तेज में रत भारत, इस अर्थ में सारा विश्व भारत बनेगा
नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने आज दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में “ऐतिहासिक कालगणना – एक भारतीय विवेचन” पुस्तक का लोकार्पण किया. पुस्तक का लेखन रवि शंकर ने किया है.
लोकार्पण कार्यक्रम में सरसंघचालक ने कहा कि “पहली बार आक्रामक शक्तियां हमारे यहां पर आईं, तो पहले-पहले सम्पत्ति के लुटेरे थे. कोई चले जाते थे, कोई यहीं बस जाते थे. शक, हूण, कुषाण, यहां आए, वो सभी हमारे भीतर समाहित हो गए. भारत के बनकर रह गए. लेकिन बाद में इस्लाम का आक्रमण आया, उनका उद्देश्य श्रद्धाओं का निकंदन था. उसका भाव था कि हम ही सही बाकी सब गलत. हमारे सांस्कृतिक प्रतीकों को तोड़ा, श्रद्धाओं के निकन्दन के लिए प्रतीकों को तोड़ा. लंबे समय तक लड़ाई चली. मगर लड़ाई भी एक संबंध का कारण होता ही है. संबंधों का परिणाम यह हुआ कि आक्रांता भी भारतीय सांस्कृतिक परम्परा से प्रभावित होने लगे. समरसता आने की प्रक्रिया शुरू हुई, जिसमें दाराशिकोह जैसे लोग भी हुए, जिन्होंने वेदों को पढ़ा, जाना, उनका अनुवाद किया.”
औरंगजेब ने जो किया वो मुसलमानों के साथ एकता स्थापित होने की प्रक्रिया को विस्थापित करने की ही प्रक्रिया थी. अंग्रेजों ने जो करवाया वो भी यही था. आज भी चलता है. उन्होंने कहा, “आज भारत में विदेशी कोई नहीं. भारत में सभी भारतीय पूर्वजों के वंशज हैं, हिन्दू पूर्वजों के ही वंशज हैं. कोई हमको बदल देगा ऐसा भय नहीं है. बस डर यही है कि कहीं हम भूल न जाएं.” उन्होंने कहा कि हिटलर जैसा व्यक्ति खुद को आर्य क्यों कहता था? क्योंकि आर्य सम्मानित शब्द था. संबंध नहीं था, लेकिन राजनीतिक हित के लिए खींच तानकर जोड़ने का प्रयास किया.
पहले पहल अंग्रेज यहां आए तो वह भी हमारे ज्ञान-शील की महत्ता देखकर चौंक गए. उनके राज्यकर्ताओं को ध्यान में आया कि ऐसे ही चलता रहा तो इन्हें गुलाम बनाना तो दूर हम ही समाहित हो जाएंगे. भारतीयों के ज्ञान शील की पराकाष्ठा उनके सामरिक व्यापिरक हितों में बाधा है, इसे जानकर हमें तोड़ने, गिराने का षड्यंत्र किया. अंग्रेजों हमारी व्यवस्थाएं, शिक्षा की व्यवस्था, अर्थ की व्यवस्था पूरी तरह से तोड़ दीं. हमरी भाषाओं के मूल को हमसे छीन लिया, काट दिया. और अपनी परिभाषा स्थापित की. हमारी प्रमाण मीमांसा को दकियानूसी, अंधश्रद्धा कहा और अपनी सदोष प्रमाण मीमांसा को यहां लाद दिया.
आज खेती के हमारे ही पुराने तरीके अंतरराष्ट्रीय बनाकर वापस लाए जा रहे हैं. हमारे यहां जैविक खेती, मिट्टी में पाए जाने वाले कृमि, वनस्पति के सूखे पत्तों का उपयोग सहित कई परंपराएं हमारे यहां थीं. हमारे यहां कोई मिट्टी के टेस्ट की लेबोरेटरी नहीं थी. किसान ही हमारा वैज्ञानिक था और उसका खेत उसकी लेबोरेटरी थी. कभी 8-9 हज़ार धान की प्रजाति हमारे पास थी. दुनिया चुरा कर ले गई. ऐसे में आज भी यदि किसान पर्याप्त उद्यम करे, तो उच्च जीवन व्यतीत कर सकता है. इसके उदाहरण हैं. आत्मनिर्भर भारत के लिए जरूरी है कि हम अपनी आत्मा को देखें. उससे साक्षात्कार करें.
सरसंघचालक ने कहा कि गांधी जी ने कहा था हिन्दुत्व सत्य के सतत अनुसंधान का नाम है, ये काम करते-करते आज हिन्दू समाज थक गया है, सो गया है. परन्तु जब जागेगा पहले से अधिक ऊर्जा लेकर जागेगा और सारी दुनिया को प्रकाशित कर देगा.
उन्होंने कहा कि सत्य के तेज में रत भारत, इस अर्थ में सारा विश्व भारत बनेगा. भारत का राज नहीं होगा सब पर, भारत राज नहीं करता. हम किसी देश में सेना या मल्टीनेशनल कम्पनी लेकर नहीं जाएंगे, बल्कि हम अपना हृदय लेकर जाएंगे. हम सबको संस्कार देंगे, हम सबको ज्ञान देंगे. ऐसे सत्य की आराधना करने वाला विश्व बनाने के लिए संघर्ष जारी है.
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