सीबीआई की विशेष लखनऊ अदालत ने मामले में सुनाया फैसला
नई दिल्ली. अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराए जाने से संबंधित मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण अडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, चम्पत राय, महंत नृत्यगोपाल दास, कल्याण सिंह, सहित समस्त 32 आरोपियों को बरी कर दिया. निर्णय सुनाते हुए विशेष अदालत के न्यायाधीश एसके यादव ने कहा कि ढांचे को गिराए जाने की घटना पूर्व नियोजित या साजिश नहीं थी, वह आकस्मिक घटना थी. आरोपियों के खिलाफ पुख्ता साक्ष्य नहीं हैं.
न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचे के पीछे से दोपहर 12 बजे पथराव शुरू हुआ. अशोक सिंहल ढांचे को सुरक्षित रखना चाहते थे क्योंकि ढांचे में मूर्तियां थीं. कारसेवकों के दोनों हाथ व्यस्त रखने के लिए जल और फूल लाने को कहा गया था.
न्यायालय ने अखबारों को साक्ष्य नहीं माना और कहा कि वीडियो कैसेट के दृश्य भी स्पष्ट नहीं हैं. कैसेट्स को सील नहीं किया गया, जो फोटोग्राफ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये गए उनके नेगेटिव प्रस्तुत नहीं किए गए. साध्वी ऋतम्भरा और कई अन्य अभियुक्तों के भाषण के टेप को सील नहीं किया गया. एलआईयू की रिपोर्ट में पहले से 6 दिसंबर 1992 को अनहोनी की आशंका थी, लेकिन उसकी जांच नहीं की गई. फोटो कॉपी की मूल प्रति प्रस्तुत नहीं की गई.
निर्णय करीब दो हजार पेज का है. सीबीआइ व अभियुक्तों के वकीलों ने ही करीब साढ़े आठ सौ पेज की लिखित बहस दाखिल की है. इसके अलावा न्यायालय में सीबीआई ने 351 गवाह व 600 से अधिक दस्तावेज प्रस्तुत किए. विवादित ढांचा विध्वंस के मामले में 48 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से 32 जीवित हैं.
28 वर्ष तक चली सुनवाई के बाद ढांचा विध्वंस के आपराधिक मामले में फैसला सुनाने के लिए सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एसके यादव ने सभी आरोपियों को आज तलब किया था. वहीं, फैसले को लेकर रामनगरी की सुरक्षा कड़ी कर दी गई है.
ढांचा विध्वंस मामले में इकबाल अंसारी का कहना है कि कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया है ये अच्छी बात है, हम इसका सम्मान करते हैं.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि – सत्यमेव जयते! CBI की विशेष अदालत के निर्णय का स्वागत है. तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित हो पूज्य संतों, @BJP4India नेताओं, विहिप पदाधिकारियों, समाजसेवियों को झूठे मुकदमों में फँसाकर बदनाम किया गया. इस षड्यंत्र के लिए इन्हें जनता से माफी मांगनी चाहिए.