छह-छह स्वयंसेवकों की टोलियां बनाकर सेवा में जुटे हैं स्वयंसेवक
स्वपनिल मालपुरे
मुंबई (विसंकें). जलगांव जिले में रहने वाले मेरे एक रिश्तेदार की कोरोना के कारण मृत्यु हो गयी. उन्हें उपचार के लिए नासिक लाया गया था. उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी. उनके साथ आया उनका भाई भी कोरोना पॉजिटिव निकला, तो उसे क्वारंटाइन किया गया. इस परिस्थिति में मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार कैसे करें, यह प्रश्न खड़ा हो गया. मृतक के घर में माता जी, पत्नी, बेटा, बेटी, भाई सब रिश्तेदार होने के बावजूद भी किसी का अंतिम संस्कार के लिए पहुंचना मुश्किल था. बस, हम दो चार रिश्तेदार वहाँ पर मौजूद थे. मृत व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव होने के कारण डेड बॉडी मिलना भी मुश्किल था और कोई कर्मचारी हाथ लगाने को तैयार नहीं था. अब, क्या करें इस दुविधा में हम थे.
दो-तीन घंटे गुजर जाने के बाद २५-३० वर्ष के पांच-छह युवक वहाँ पर आए. उन्होंने पूछा, क्या आपका कोई रिश्तेदार कोरोना के कारण गुजर गया है?
हमारे, हाँ कहने पर उन्होंने कहा, हम मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार करने आए हैं. कृपया, डेड बॉडी हमें सौंपें. मैंने पूछा कि क्या आप रुग्णालय के कर्मचारी हो? उन्होंने कहा, जी नहीं.
मुझे लगा कि वे निश्चित ही महानगरपालिका कर्मचारी होंगे. इस पर भी उन्होंने ना कहा.
मैंने आग्रहपूर्वक पूछा कि आप कौन हो? उस पर उनका उत्तर सुनकर हम हैरान रह गए.
उन्होंने कहा, हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक हैं. संघ के माध्यम से कोरोनाग्रस्त रुग्ण और उनके परिजनों को सहायता उपलब्ध करवा रहे हैं. वास्तव में आज ऐसी स्थिति है कि कोई किसी को सहायता कर नहीं सकता. जिनके घर में छोटे बच्चे हैं और घर का मुख्य व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हो गया हो उसे कौन मदद करेगा? जिस घर में केवल वयोवृद्ध लोग हैं, उनकी मदद कौन करेगा? कोरोना संक्रमितों को घर का खाना देने के लिए भी कोई तैयार नहीं है. उनके परिजनों को सहायता नहीं मिल रही है. ऐसी स्थिति में लोगों की मदद कर रहे हैं.
हम सहायता करते हैं, ऐसा कहकर वे आगे की तैयारियों में जुट गए. रुग्णालय के कर्मचारियों को उन्होंने पेपर वर्क पूरा करने के लिए कहा. प्रत्येक स्वयंसेवक ने पीपीई किट पहन ली. तैयारी पूरी होने के बाद उन्होंने हमें घर जाने का सुझाव दिया अथवा शमशान में दूर खड़े रहने को कहा. मन में कोई भी संकोच ना रखें, हम सभी अंतिम संस्कार अच्छी तरह से करेंगे, ऐसा कहकर हमें आश्वस्त किया. विधि हो जाने के पश्चात मैंने उनसे संपर्क क्रमांक लिया.
घर आने के पश्चात भी दिन में घटी वह घटनाएँ भूल नहीं पाया. उन्हें मैंने शाम को फोन किया और मेरा परिचय देकर उन स्वयंसेवकों के स्वास्थ्य की पूछताछ की. कहां हो, यह भी पूछा.
उन्होंने कहा, अब हम छह लोग कुछ दिनों के लिए क्वारेंटीन रहेंगे.
मैंने पूछा, तो क्या अब आप का मदद कार्य थम जाएगा?
उन्होंने मुझे मदद कार्य की पूरी योजना बताई. छह-छह युवाओं की ऐसी कुल दस टीमें कोरोना संक्रमितों की मदद के लिए तैयार हैं.
पहली टीम २४ घंटों की सेवा के बाद क्वारेंटीन हो जाती है. बाद में दूसरी टीम मदद कार्य जारी रखती है. इसी प्रकार, तीसरी, चौथी करते-करते ११वें दिन पहली टीम का दस दिनों का क्वारेंटीन समाप्त हो जाता है. तो फिर वह टीम कार्यान्वित हो जाती है.
यह सभी स्वयंसेवक इंजीनियरिंग, मेडिकल, फार्मेसी, बीए, बीकॉम ऐसे अलग-अलग क्षेत्रों में शिक्षा ले रहे हैं. कोई भी अभिलाषा रखे बिना वे समाजसेवा का उत्तरदायित्व निभा रहे हैं. उनके इस कार्य को मेरा प्रणाम!