
इंदौर. डॉ. हेडगेवार स्मारक समिति द्वारा आयोजित चिंतन यज्ञ में (रविवार, 02 जुलाई) “शिवराज्याभिषेक का संदेश” विषय पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज एक ऐसे अपराजिता योद्धा थे, जिन्होंने “हिन्दवी-स्वराज्य” की पुनर्स्थापना कर स्वदेशी व स्वधर्म आधारित लोक कल्याणकारी शासन तंत्र का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया. स्वतंत्रता प्राप्ति के अमृतकाल में छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक का संदेश वर्तमान में भी अतिप्रासंगिक व अनुकरणीय प्रतीत होता है.
उन्होंने कहा कि जिस तरह श्रीराम ने धरती को राक्षसहीन करने का संकल्प लिया, श्रीकृष्ण जी ने धर्म संस्थापना का कार्य किया, उसी तरह शिवाजी महाराज हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के लिए अवतारी पुरुष थे. छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की घटना ऐतिहासिक घटना थी. मोहम्मद कासिम से प्रारंभ हुए विदेशी आक्रमण सतत चलते रहे, पृथ्वीराज चौहान ने उन आक्रमणों का प्रतिरोध किया, किंतु पृथ्वीराज चौहान के पश्चात भारतीयों को लगने लगा कि वे केवल पराधीन होने के लिए ही हैं, सम्पूर्ण समाज में निराशा थी. ऐसे में मात्र 15 वर्ष की आयु में शिवबा ने, रोहिडेश्वर के शिव मंदिर में अपनी अंगुली के रक्त से भगवान का अभिषेक कर “हिंदवी स्वराज” की स्थापना का संकल्प लिया.
सरकार्यवाह जी ने शिवाजी महाराज के जीवन की विभिन्न घटनाओं – पहलुओं को विश्लेषणात्मक रूप से बताया. औरंगजेब द्वारा मंदिरों का विध्वंस, सामान्य नागरिकों को पीड़ा पहुंचाने पर भी शिवाजी उद्वेलित नहीं होते, बल्कि औरंगजेब के अपने पाले में आने की प्रतीक्षा करते हैं.
शिवाजी महाराज को लेखकों ने भगवान विष्णु की तरह जन प्रतिपालक कहा है. शिवाजी महाराज के मन में सम्राट बनने की इच्छा नहीं थी, किंतु विदेशी सत्ता को समाप्त करने के लिए वे राजा हुए, उन्हें छत्रपति की उपाधि दी गई, क्योंकि वे सम्पूर्ण समाज के लिए छत्र के समान हैं. शिवाजी महाराज ने जल सिंचन की व्यवस्था, नौकायन, भूमि की नाप, मुद्रा, कर, मंत्रिमंडल जैसी आदर्श व्यवस्था अपने शासनकाल में प्रारंभ की.
कार्यक्रम के प्रारंभ में मालवा के बलिदानी शॉर्ट फिल्म का प्रदर्शन किया गया. फिल्म में देश की स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने वाले महान स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन परिचय का चित्रण किया गया है.