रक्षाबंधन का उत्सव देशभर में उत्साह से मनाया जाता है. सनातन संस्कृति में सबसे पवित्र संबंध भाई एवं बहन का होता है. इस पवित्र संबंध को हर्ष-उल्लास के साथ मनाने का पर्व है रक्षाबंधन. भारत का सनातन समाज हजारों वर्षों से पर्व को मनाता आ रहा है. जनजाति समाज में भी रक्षाबंधन का अत्यधिक महत्व है.
जनजाति समाज अलग-अलग तरीकों से रक्षाबंधन का पर्व मनाता है. कहीं यह पर्व एक दिन का होता है तो कहीं यह साढ़े तीन महीनों तक चलता है. किसी क्षेत्र में यह भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है तो किसी क्षेत्र में इसे अपनी फसल को रक्षासूत्र के रूप में किसान बांधते हैं.
जशपुर के कोरवा जनजाति में रक्षाबंधन
वनवासी बाहुल्य छत्तीसगढ़ प्रदेश में कोरवा जनजाति के लोग एक दिन नहीं, बल्कि एक सप्ताह तक रक्षाबंधन का पर्व मनाते हैं. कोरवा जनजाति के लिए पर्व का अलग महत्व होता है, यह इनके लिए भाई-बहन के पर्व के रूप में नहीं, बल्कि खेती की पुरातन परंपरा से जुड़ा हुआ है. कोरवा जनजाति की परंपरा के अनुसार राखी भाई की कलाई में ना बांधकर खेतों में राखी खूंटा स्थापित किया जाता है.
जनजाति समाज के लोग कुलदेवता की उपासना करने के पश्चात पूरे सम्मान के साथ तेंदू की लकड़ी, शतावर और भेलवां पत्ते की पूजा कर उसे राखी बांधते हैं. इस प्रक्रिया के बाद राखी खूंटा को अपने खेतों में लगाकर उन्नत फसल की मनोकामना करते हैं.
बैगाओं (जनजातियों के पुरोहित) का मानना है कि यह खूंटा किसी भी तरह की बुरी नजर से बचाता है. अच्छी फसल को किसी की बुरी नजर नहीं लगती है. बैगाओं का कहना है कि इस प्रक्रिया में भी सभी तरह की पवित्रताओं का ध्यान रखा जाता है, चाहे वो तेंदू की लकड़ी लाना हो या भेलवां की पत्ती लाना हो.
उनका मानना है कि ‘खूंटा को खेत में स्थापित कर हम यही कामना करते हैं कि खेती अच्छी हो और हमें वर्ष भर किसी आपदा का सामना ना करना पड़े.’ वहीं दूसरी ओर आयुर्वेद के जानकारों का कहना है कि जिन पौधों का प्रयोग इस प्रक्रिया में किया जाता है, उसका आयुर्वेद में भी विशेष महत्व होता है.
कोतबा क्षेत्र की जनजाति में रक्षाबंधन
छत्तीसगढ़ के जशपुर अंतर्गत कोतबा अंचल में जनजाति समाज रक्षाबंधन को गोसंरक्षण के रूप में भी मनाता है. इस क्षेत्र में जनजाति समाज की बहनें अपने भाइयों को राखी बांधने से पूर्व गोवंश को राखी बांधती हैं. जनजाति बाहुल्य क्षेत्र जशपुर में तीज-त्यौहारों को कुछ अनूठे अंदाज में मनाने की परंपरा है.
क्षेत्र के जनजाति समाज का मानना है कि गोवंश के नर पशु परिवार के सदस्यों का खेती में सहयोग करते हैं और गाय भी दूध देकर उनका पेट पालती है, ऐसे में ये भी घर के ही सदस्य हैं. यही कारण है कि आधुनिकता के दौर में भी क्षेत्र की बहनें भाई और अपने पूरे परिवार की सुख-समृद्धि के लिए सबसे पहले गौवंश को राखी बांधती हैं.
खरगोन क्षेत्र के जनजाति समाज में रक्षाबंधन
मध्यप्रदेश का खरगोन क्षेत्र भी जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है. यहां रक्षाबंधन का पर्व पूर्णिमा से लेकर जन्माष्टमी एवं पोला (अमावस्या) तक मनाया जाता है. इस क्षेत्र के जनजाति समाज में यह आस्था है कि वे लोग प्रत्येक महत्वपूर्ण पर्व के दौरान अपने पूर्वजों को श्राद्ध डालते हैं. रक्षाबंधन के दौरान भी समाज द्वारा यह प्रक्रिया अपनाई जाती है. रक्षाबंधन के दिन जनजातीय बहनें अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधकर उनसे रक्षा करने का वचन लेती हैं.
सैलाना क्षेत्र की जनजातियों में राखी का पर्व
राजस्थान की सीमा से सटे मध्यप्रदेश के सैलाना क्षेत्र में जनजाति समाज एक दिन के लिए रक्षाबंधन पर्व नहीं मनाता है, बल्कि यह पर्व साढ़े तीन माह तक चलता है. क्षेत्र के जनजाति समाज में यह पर्व श्रावण अमावस्या से शुरू होकर कार्तिक सुदी चौदस तक चलता है.
इस दौरान श्रावण मास की पूर्णिमा को भी पूरे हर्षोल्लास के साथ रक्षाबंधन मनाया जाता है. किंतु यदि किसी कारणवश बहनें अपने भाई को इस दिन राखी ना बांध पाएं तो उन्हें इन साढ़े तीन महीनों में कभी भी राखी बांधने की अनुमति होती है. क्षेत्र में राखी का महत्व दुःख के क्षणों में भी देखा जाता है. क्षेत्र में जनजाति महिलाएं अपने मायके में किसी शोक के दौरान भी ‘शोक की राखी’ लेकर जाती हैं.
रक्षाबंधन के दिन सुबह बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं और शाम को परिवार के सभी लोग घर के दरवाजों, खाट, हल एवं पशुओं सहित कृषि यंत्रों को राखी बांधते हैं. इसके अलावा इस क्षेत्र के जनजाति समाज में एक परंपरा यह भी है कि विवाह के बाद पहले रक्षाबंधन में बेटी को लेने 40 से 50 लोग जाते हैं, जिसे ‘पाली’ लेकर जाना भी कहा जाता है.