नई दिल्ली. चीन को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में शामिल करने पर निर्वासित तिब्बत सरकार ने आपत्ति जताई है. तिब्बत की निर्वासित सरकार का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र का यह निर्णय मानवाधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि चीन ने कभी मानवाधिकारों की पालना नहीं की है. तिब्बत में चीन का रवैया सबसे बड़ा उदाहरण है. इस फैसले से यह भी साबित हुआ है कि परिषद उन देशों को यूएनएचआरसी में शामिल होने की अनुमति दे रही है जिनका मानवाधिकारों को को लेकर रिकार्ड पहले से ही खराब है. निर्वासित सरकार ने सवाल उठाया कि कैसे उन देशों को इसमें शामिल किया जा सकता है जो पहले से ही मानवाधिकारों की उल्ल्लंघना करते आ रहे हैं और चीन इन सबमें सबसे आगे है.
निर्वासित सरकार ने अमेरिकी सरकार की ओर से की गई आपत्ति को लेकर प्रसन्नता व्यक्त की, क्योंकि तिब्बत की समस्या के समाधान को लेकर ट्रंप सरकार कहीं आगे है. निर्वासित सरकार ने अमेरिका द्वारा तिब्बत के मसले को लेकर अतिरिक्त सचिव को नियुक्त किए जाने के फैसले का भी स्वागत किया है. इस नियुक्ति से तिब्बत के मसले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरी मजबूती के साथ उठाया जाएगा.
निर्वासित तिब्बत संसद के उपाध्यक्ष
निर्वासित तिब्बत संसद के उपसभापति आयार्च यशी ने कहा कि चीन सरकार को मानवाधिकार परिषद में चुना जाना दुभार्ग्यपूर्ण है. चीन सरकार ने अपने कई अल्पसंख्यक समूहों को दबाकर रखा है. चीन सरकार को मानवाधिकार परिषद में चुना जाना एक दुःखद घटना है. यह भी हो सकता है अन्य देशों को चीन सरकार द्वारा पैसा भी दिया गया हो. नहीं तो यह संभव नहीं है कि चीन को परिषद में शामिल किया जा सकता था. जानबूझ कर चीन को परिषद में शामिल किया जाना मानवाधिकारों का उल्लंघन भी है. यह निंदनीय व अफसोस की बात है. हम इस बात के लिए अमेरिका सरकार का धन्यवाद भी करते हैं. वह तिब्बत के मामले को लेकर अपनी आवाज को उठाता रहा है. हमारे लिए खुशी की बात यह भी है कि अमेरिका द्वारा अतिरिक्त सचिव को तिब्बत के मसले को हल करने के लिए नियुक्त किया गया है.
मीडिया रिपोर्ट्स