
देवर्षि नारद जयंती 2025: निडर और मूल्य आधारित भारतीय पत्रकारिता का आह्वान
“भारतीय पत्रकारिता को उपनिवेशी मानसिकता और वामपंथी दृष्टिदोष से बाहर निकलना चाहिए” — डॉ. हर्षवर्धन त्रिपाठी
गुवाहाटी, 1 जून — जब वैश्विक सूचना युद्ध, राजनीतिक एजेंडा-प्रेरित आख्यान और वैचारिक ध्रुवीकरण मीडिया विमर्श को पुनर्परिभाषित कर रहे हैं, तब देवर्षि नारद जयंती 2025 के अवसर पर गुवाहाटी से एक सशक्त संदेश उभरा — भारतीय पत्रकारिता को आधुनिक चुनौतियों से जूझने के लिए अपने सांस्कृतिक मूल और नैतिक दिशा-बोध से पुनः जुड़ना होगा।
विश्व संवाद केंद्र (VSK), असम द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम एक ओर जहाँ देवर्षि नारद — जिन्हें भारतीय परंपरा में विश्व का प्रथम संवाददाता माना जाता है — को श्रद्धांजलि था, वहीं यह आज की पत्रकारिता की दशा और दिशा पर गंभीर चिंतन का मंच भी बना।
दिल्ली से पधारे वरिष्ठ पत्रकार और विचारक डॉ. हर्षवर्धन त्रिपाठी ने सुदर्शनालय में अपने मुख्य वक्तव्य में भारतीय मीडिया के कुछ वर्गों में व्याप्त वैचारिक विचलन और नैतिक भ्रम की तीव्र आलोचना की। उन्होंने कहा: “नारद न किसी राजा के दरबारी बने, न उन्होंने शाही संरक्षण की इच्छा रखी। वे सत्य, साहस और धर्म के लिए खड़े रहे। लेकिन आज की पत्रकारिता ऐसे आदर्शों से प्रेरणा लेने के बजाय उपनिवेशी और वामपंथी मानसिकता में फंसी हुई है।”
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि मीडिया का एक बड़ा हिस्सा आतंकवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान जैसे वास्तविक मुद्दों से टकराने के बजाय, वैचारिक पूर्वग्रहों के चलते या तो चुप्पी साध लेता है या तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करता है।
डॉ. त्रिपाठी ने पहलगाम हत्याकांड का उल्लेख करते हुए इसे मीडिया की नैतिक हिचक का उदाहरण बताया। “जब किसी घटना में पीड़ितों को उनके धर्म के आधार पर निशाना बनाया जाता है, तो उसे इस्लामी आतंकवाद कहने में संकोच क्यों होता है?” उन्होंने सवाल उठाया।
उन्होंने उन स्वदेशी रक्षा तकनीकों के प्रति लंबे समय से चले आ रहे तिरस्कार की आलोचना की, जिनकी अब युद्ध के मैदान में प्रभावशीलता प्रमाणित हो चुकी है। “जिन भारतीय रक्षा प्रणालियों का कभी मज़ाक उड़ाया गया, उन्होंने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के अमेरिकी, तुर्की और चीनी आयातित हथियारों से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है,” उन्होंने कहा।
आंतरिक चुनौतियों की चर्चा करते हुए डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि तथाकथित ‘समानता की राजनीति’ ने समाज में सांस्कृतिक विच्छेदन और विभाजन को जन्म दिया है। “आज के पत्रकारों को नारद के आदर्श — निडर, निष्पक्ष और नैतिक मूल्यों पर आधारित संवाद — को अपनाना चाहिए।”
उन्होंने यह भी कहा कि आज फैक्ट-चेकिंग जैसी प्रणाली भी राजनीतिक हथियार बनकर सत्य की खोज नहीं, बल्कि आख्यान नियंत्रण का माध्यम बनती जा रही है। डॉ. त्रिपाठी ने पत्रकारों के निजी जीवन में भी सादगी, ईमानदारी और राष्ट्रप्रेम जैसे मूल्यों के अनिवार्य होने पर बल दिया: “एक पत्रकार का निजी जीवन वही मूल्य प्रतिबिंबित करे जो वह समाज से अपेक्षा करता है ।
कार्यक्रम की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही — सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार और ‘मौचाक’ तथा ‘नतुन आविष्कार’ के संपादक शंतनु तमुली को देवर्षि नारद जयंती पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया जाना।
अपने उद्बोधन में तमुली ने कहा: “यह पुरस्कार मेरे लिए ही नहीं, असम की पूरी साहित्यिक बिरादरी के लिए एक आजीवन प्रेरणा का स्रोत है।” पुरस्कार में उन्हें असमिया सेलेंग चादर, स्मृति चिह्न, प्रमाण-पत्र, चयनित पुस्तकें, भारत माता का चित्र, तथा ₹50,000 की नकद राशि प्रदान की गई ।
कार्यक्रम की शुरुआत भारत माता की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ हुई, जिसके पश्चात कलाकार शरत राग द्वारा नारद स्तोत्र का सस्वर गायन किया गया। इसने पूरे आयोजन को एक गंभीर और सांस्कृतिक भाव से ओतप्रोत कर दिया।
हिमांशु पाठक (असमीया खबर), दिगंता साहारिया (प्राग न्यूज़), और खानिन डेका (नियोमिया बरता) जैसे पत्रकारों को गमछा और भारत माता का चित्र भेंट कर सम्मानित किया गया — जो इस आयोजन के भारतीय सांस्कृतिक स्वरूप को दर्शाता है।
VSK के सचिव किशोर शिवम ने अपने स्वागत भाषण में कहा: “सूचना की अधिकता और नैतिक भ्रम के इस युग में नारद जी का आदर्श हमें याद दिलाता है कि पत्रकारिता का उद्देश्य केवल संवाद नहीं, बल्कि सत्य, उत्तरदायित्व और समाज सेवा में निहित है।” कार्यक्रम में डॉ. गौरांग शर्मा (अध्यक्ष, विश्व संवाद केंद्र, असम), गुरुप्रसाद मेधी (उपाध्यक्ष), डॉ. सुनील महंती (क्षेत्र प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ), और प्रमोद कलिता (सचिव, असम प्रकाशन परिषद) सहित कई विशिष्टजन उपस्थित रहे।