देश में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में सुनियोजित तरीके से एक वामपंथी विचारधारा कार्य करती है जो यह समझती है कि आम जनता को वो जैसा बताऐंगे वही मान्य हो जाएगा । भारतीय सिनेमा को संभवतः इसीलिए बॉलीवुड के नाम से चलाया भी जाता है ।
केरला स्टोरी के निर्देशक सुदिप्तो सेन ने इंदौर में डॉ हेडगेवार स्मारक समिति के वार्षिक व्याख्यान कार्यक्रम में “समाज परिवर्तन में सिने जगत की भूमिका” विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्याख्यान देते हुए कहा कि केरला स्टोरी के बाद मुझे समझ में आया कि फिल्मे वास्तव में समाज परिवर्तन का प्रभावी माध्यम हैं। केरल स्टोरी बनाने के बाद से ही जब अनेक कानूनी व आर्थिक समस्याएं सामने आईं तो भय था कि फिल्म रिलीज भी हो पाएगी कि नहीं , पर इसके रिलीज होने के दो माह में ही जैसा प्रतिसाद समाज की ओर से आया तो विश्वास हो कि देश में एक बड़ा परिवर्तन आ रहा है।
श्री सेन ने आगे कहा कि इस फिल्म को कुछ लोगों ने प्रोपोगेण्डा कह कर दुष्प्रचारित किया , वही असल में यह फिल्म केरल में हाऊस फुल रही है , हैदराबाद में इसने 23 करोड की कमाई की है और बिहार में लोगो ने इसे बेहद पसंद किया है। आज इस विषय पर समाज में खुलकर चर्चा होने लगी है ।
जिन 3.5 करोड लोगो ने यह फिल्म देखी है , वे ही इस विमर्श को बाकी समाज तक लेकर जा रहे हैं।
अब एक वर्ग विशेष कन्टेन्ट पर कन्ट्रोल नही रखेगा , समाज अपना एजेंडा खुद तय करेगा । भारत में आगे जो फिल्म बनेगी उन पर समाज की सोच दृष्टिगत होगी , कोई भी एक विशेष विचारधारा अब काम नहीं करेगी ।