नई दिल्ली.
आज माँ को भी इस अद्वितीय मौक़े पर साथ ले गई थी.
राम मंदिर – भारतीयों के सब्र का प्रतीक है, 22 जनवरी न्याय की प्रतीक्षा का प्रतीक है. जब आप भारत की खुशी में शरीक होंगे… भारत की आस्था को सम्मान देंगे तो एक-एक भारतीय आपको सर-आँखों पर बैठा देगा.. राजनीति तो चाहेगी कि आप इस दिव्य राम मंदिर को धार्मिक चश्मे से तौलें… लेकिन ईमानदारी से इसे ऐतिहासिक, न्यायिक तराज़ू पर तौलेंगे तो पाएँगे कि इस ज़मीन का हक़, इसी ज़मीन पर पैदा हुए राम जी का है.
समझ लगाएँगे तो पाएँगे कि ये धार्मिक लड़ाई हो ही नहीं सकती… ये जन्मभूमि प्रभु राम की है.. कश्मकश तब होती जब हमारे नबी कि या उनके अहल-ओ-अयाल की पैदाइश इसी ज़मीन पर होती… बाहर से आए आक्रांता इस्लाम को मानते ज़रूर थे, लेकिन वो यहाँ धर्म के लिए नहीं अपने वर्चस्व के लिए आए थे.. और धर्म का उस वर्चस्व की लड़ाई में हथियार की तरह इस्तेमाल किया. वरना किस हक़ से किसी और के आराध्य की सबसे पाक ज़मीन पर वो अपनी पहचान थोप सकते है? ये तो असल इस्लाम नहीं सिखाता.. आज का दिन गड़े मुर्दे उखाड़ने का नहीं है. लेकिन तार्किक निष्कर्ष निकालने के लिए इतिहास के पन्ने पलटना ज़रूरी होता है. आपसे कोई नमाज़ का हक़ नहीं छीन रहा, न ही ये आपके साथ अन्याय है.. नज़रिया ठीक कीजिए और दिल बड़ा करके देखिए.. ये हमारे मुल्क की जीत है, उसके खोए हुए स्वर्णिम अध्याय की वापसी है…
हम भारत के हैं और भारत राम का है. बस इतनी सी बात है…. सियावर रामचंद्र की जय
(जानी-मानी पत्रकार रुबिका लियाकत के सोशळ मीडिया प्लेटफॉर्म से)