अयोध्या/नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघछालक डॉ. मोहन भागवत जी, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, उत्त प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में नवनिर्मित श्री राम जन्मभूमि मंदिर में प्रभु श्री रामलला के प्राण प्रतिष्ठा (प्रतिष्ठा) समारोह में भाग लिया.
इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि सदियों के बाद आखिरकार हमारे राम आ गए हैं. “सदियों के धैर्य, अनगिनत बलिदान, त्याग और तपस्या के बाद, हमारे भगवान राम यहां हैं.” ‘गर्भगृह’ (आंतरिक गर्भगृह) के अंदर ईश्वरीय चेतना का अनुभव शब्दों में नहीं किया जा सकता है. “हमारे रामलला अब तंबू में नहीं रहेंगे. यह दिव्य मंदिर अब उनका घर होगा”.
उन्होंने कहा कि “यह क्षण अलौकिक और पवित्र है, वातावरण, पर्यावरण और ऊर्जा हम पर भगवान राम के आशीर्वाद का प्रतीक है”. 22 जनवरी की सुबह का सूरज अपने साथ एक नई आभा लेकर आया है. 22 जनवरी केवल कैलेंडर की एक तारीख नहीं है, यह एक नए ‘काल चक्र’ का उद्गम है”. ”आज हमें सदियों के धैर्य की विरासत मिली है, आज हमें श्री राम का मंदिर मिला है.” गुलामी की मानसिकता को तोड़कर उठ खड़ा हो रहा राष्ट्र, अतीत के हर दंश से हौसला लेकर, ऐसे ही नव इतिहास का सृजन करता है.
आज की तारीख की चर्चा आज से एक हजार साल बाद की जाएगी और यह भगवान राम का आशीर्वाद है कि हम इस महत्वपूर्ण अवसर के साक्षी हैं. “दिन, दिशाएं, आकाश और हर चीज आज दिव्यता से भरी हुई है”. ये समय, सामान्य समय नहीं है. ये काल के चक्र पर सर्वकालिक स्याही से अंकित हो रही अमिट स्मृति रेखाएँ हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘त्रेता युग’ में राम आगमन पर संत तुलसीदास ने लिखा,“प्रभु बिलोकि हरषे संत तुलसीदास पुरबासी. जनित वियोग बिपति सब नासी. अर्थात्, प्रभु का आगमन देखकर ही सब अयोध्यावासी, समग्र देशवासी हर्ष से भर गए. उस कालखंड में तो वो वियोग केवल 14 वर्षों का था, तब भी इतना असह्य था. इस युग में तो अयोध्या और देशवासियों ने सैकड़ों वर्षों का वियोग सहा है. संविधान की मूल प्रति में श्रीराम मौजूद होने के बावजूद आजादी के बाद लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई. प्रधानमंत्री ने न्याय की गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भारत की न्यायपालिका को धन्यवाद दिया. उन्होंने भारत की न्यायपालिका का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि न्याय के पर्याय प्रभु राम का मंदिर भी न्याय बद्ध तरीके से ही बना.
छोटे-छोटे गांवों सहित पूरा देश आज दिवाली मना रहा है. हर घर शाम को ‘राम ज्योति’ जलाने के लिए तैयार है. सागर से सरयू तक की यात्रा का अवसर मिला. सागर से सरयू तक, हर जगह राम नाम का वही उत्सव भाव छाया हुआ है. प्रभु राम तो भारत की आत्मा के कण-कण से जुड़े हुए हैं. राम, भारतवासियों के अंतर्मन में विराजे हुए हैं. हम भारत में कहीं भी, किसी की अंतरात्मा को छुएंगे तो इस एकत्व की अनुभूति होगी, और यही भाव सब जगह मिलेगा. इससे उत्कृष्ट, इससे अधिक, देश को समायोजित करने वाला सूत्र और क्या हो सकता है?
कई भाषाओं में श्रीराम कथा सुनने के अपने अनुभव को याद करते हुए कहा कि राम स्मृतियों, परम्पराओं में, सर्वत्र समाए हुए हैं.हर युग में लोगों ने राम को जिया है. हर युग में लोगों ने अपने-अपने शब्दों में, अपनी-अपनी तरह से राम को अभिव्यक्त किया है. और ये रामरस, जीवन प्रवाह की तरह निरंतर बहता रहता है. रामकथा असीम है, रामायण भी अनंत हैं. राम के आदर्श, राम के मूल्य, राम की शिक्षाएं, सब जगह एक समान हैं.
प्रधानमंत्री ने उन लोगों के बलिदान के लिए आभार व्यक्त किया, जिन्होंने आज के दिन को संभव बनाया. उन्होंने संतों, कार सेवकों और राम भक्तों को श्रद्धांजलि दी. ”आज का अवसर उत्सव का क्षण तो है ही, लेकिन इसके साथ ही ये क्षण भारतीय समाज की परिपक्वता के बोध का क्षण भी है. हमारे लिए ये अवसर सिर्फ विजय का नहीं, विनय का भी है. दुनिया का इतिहास साक्षी है कि कई राष्ट्र अपने ही इतिहास में उलझ जाते हैं. लेकिन हमारे देश ने इतिहास की इस गांठ को जिस गंभीरता और भावुकता के साथ खोला है, वो ये बताती है कि हमारा भविष्य हमारे अतीत से बहुत सुंदर होने जा रहा है. “रामलला के इस मंदिर का निर्माण भारतीय समाज की शांति, धैर्य, आपसी सद्भाव और समन्वय का भी प्रतीक है. हम देख रहे हैं, ये निर्माण किसी आग को नहीं, बल्कि ऊर्जा को जन्म दे रहा है. राम मंदिर समाज के हर वर्ग को एक उज्ज्वल भविष्य के पथ पर बढ़ने की प्रेरणा लेकर आया है. “राम आग नहीं है, राम ऊर्जा हैं. राम विवाद नहीं, राम समाधान हैं. राम सिर्फ हमारे नहीं हैं, राम तो सबके हैं. राम वर्तमान ही नहीं, राम अनंतकाल हैं.”
पूरी दुनिया प्राण प्रतिष्ठा से जुड़ी है और राम की सर्वव्यापकता को देखा जा सकता है. इसी तरह के उत्सव कई देशों में देखे जा सकते हैं और अयोध्या का उत्सव रामायण की वैश्विक परंपराओं का उत्सव बन गया है. “राम लला की प्रतिष्ठा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का विचार है.”
अयोध्या में, केवल श्रीराम के विग्रह रूप की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई है. ये श्रीराम के रूप में साक्षात् भारतीय संस्कृति के प्रति अटूट विश्वास की भी प्राण प्रतिष्ठा है. ये साक्षात् मानवीय मूल्यों और सर्वोच्च आदर्शों की भी प्राण प्रतिष्ठा है. इन मूल्यों की, इन आदर्शों की आवश्यकता आज सम्पूर्ण विश्व को है. सर्वे भवन्तु सुखिन: …ये संकल्प हम सदियों से दोहराते आए हैं. आज उसी संकल्प को राम मंदिर के रूप में साक्षात् आकार मिला है. ये राम के रूप में राष्ट्र चेतना का मंदिर है. राम भारत की आस्था हैं, राम भारत का आधार, विचार, विधान, चेतना, चिंतन, प्रतिष्ठा और भारत का प्रताप हैं. राम प्रवाह हैं, राम प्रभाव हैं. राम नेति भी हैं. राम नीति भी हैं. राम नित्यता भी हैं. राम निरंतरता भी हैं. राम विभु हैं, विशद हैं. राम व्यापक हैं, विश्व हैं, विश्वात्मा हैं. और इसलिए, जब राम की प्रतिष्ठा होती है, तो उसका प्रभाव वर्षों या शताब्दियों तक ही नहीं होता. उसका प्रभाव हजारों वर्षों के लिए होता है.
महर्षि वाल्मीकि को उद्धृत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा – राज्यम् दश सहस्राणि प्राप्य वर्षाणि राघवः. अर्थात, राम दस हजार वर्षों के लिए राज्य पर प्रतिष्ठित हुए. यानी हजारों वर्षों के लिए रामराज्य स्थापित हुआ. जब त्रेता में राम आए थे, तब हजारों वर्षों के लिए राम राज्य की स्थापना हुई थी. हजारों वर्षों तक राम विश्व पथ प्रदर्शन करते रहे थे.