January 17, 2025

स्वामी सत्यदेव विद्यालंकार
आर्य समाज को कठोर हाथों में पकड़ कर एक झकझोर देने की आवश्यकता है, जैसे कि ऋषि दयानन्द ने गहरी नींद में सोये हुए अपने देशवासियों को झकझोर दिया था।
स्वामी श्रद्धानन्द जी के बाद आज आर्यसमाज में ऐसा शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति कहीं दीख नहीं पड़ता, जिसके हाथों में इतना बल हो और जिसके हृदय में इतनी सामर्थ्य हो कि वह आर्य समाज का कायाकल्प कर सके।
लेकिन भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिये इस कायाकल्प का किया जाना उतना ही जरूरी है, जितना कि ऋषि को समूचे देश का कायाकल्प करना जरूरी प्रतीत होता था।
यह निश्चित है कि इस कायाकल्प के लिये हममें से हर एक को अपना ही कायाकल्प करना चाहिए। आत्मिक अर्थात् व्यक्तिगत उन्नति ही समाज एवं संसार के उपकार की ईकाई है।
“प्रथम अपने दोष देख निकाल के पश्चात् दूसरे के दोषों को दृष्टि देके निकाले” – यह ऋषि का स्पष्ट आदेश है।
व्यक्तिगत रूप से हम सब उस [आर्य समाज रूपी] भट्टी के लिये ईधन हैं।
इसलिये अपने को जलाये और तपाये बिना उस भट्टी को प्रज्ज्वलित करने की हमारी आशा पूरी नहीं हो सकती।
अपने जलाने एवं तपाने का सीधा व स्पष्ट मतलब यही है कि हम ऋषि के दिखाये हुए मार्ग पर आरूढ हो जायं, उसके निमित्त समस्त कष्टों को झेलने के लिये तैयार हो जाय और हजारों विघ्न-बाधाओं के रहते हुए भी उससे विचलित न हों।
हमें अपने को परखना चाहिए, अपने जीवन की जांच-पड़ताल करनी चाहिए और अपने सारे व्यवहार को ऋषि के आदेश की कसौटी पर कसना चाहिए।
हम में से हर एक के जीवन की छाया हमारे संगठन व संस्था पर पड़ती है। उसी से उसका निर्माण होता है।
हमारे व्यक्तिगत जीवन के सामूहिक संचय का नाम ही तो समाज, संगठन एवं संस्था है।
अपने को ‘नास्तिक बनाये रखकर हम समाज को ‘ आस्तिक’ नहीं सकते।
अपने को सामाजिक कमजोरियों का पुंज बनाये रखकर हम समाज को बलवान नहीं बना सकते।
अपने को धार्मिक अन्ध विश्वासों में उलझाये रख कर हम समाज को उनसे छुटकारा नहीं दिला सकते।
अपने को परम्परागत रूढियों में फंसाये रखकर हम समाज को उनसे मुक्त नहीं कर सकते।
जात-बिरादरी की मोह-माया में स्वयं पड़े रह कर हम गुण-कर्म-स्वभाव को वर्ण-व्यवस्था का आधार नहीं बना सकते।
इस प्रकार हमारा सारा ही कार्यक्रम और ऋषि का सारा ही मिशन खटाई में पड़ गया है।
लेकिन इस व्यक्तिगत उन्नति का क्रम कैसे शुरू हो ?
हम तो उस भीषण आत्मवंचना के व्यापार में पड़ गये हैं, जिसमें पड़ने के बाद मनुष्य के लिये उन्नति करना कठिन हो जाता है।
हमें श्रेष्ठ, पवित्र और उच्च बनाने के लिये ऋषि ने उस ‘आर्य’ शब्द का प्रयोग किया था, जिसका सम्बन्ध भले कर्मों एवं सदगुणों के साथ है, लेकिन हमने उसे भी जातिपरक मान कर अपने को श्रेष्ठता, पवित्रता और उच्चता का अवतार मान लिया है।
सब सत्य विद्याओं का पुस्तक वेद हमें इस लिए दिया गया था कि हम उसके पढ़ने-पढ़ाने और सुनने-सुनाने का परम धर्म पालन करें, लेकिन हमें तो उस सच्चाई का इतना अभिमान हो गया कि हम यह भी भूल गये कि सत्यासत्य का अनुसंधान एवं विचार करते हुये सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहने का हमें आदेश दिया गया है।
अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि के लिए कोई विशेष उद्योग किये बिना ही हमने अपने को विद्या का पुंज मान लिया है।
वैदिक धर्म को सबसे श्रेष्ठ, सबसे पुरातन और सबसे पवित्र मानते हुए हमने उसको अपने आचार-विचार में लाने का विशेष यत्न किये बिना ही उसका अभिमान करना शुरू कर दिया है।
इस शाब्दिक अभिमान की पूजा का बल-बूते पर हम ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ के नारे को सार्थक बनाना चाहते हैं। यह कोरी आत्मवंचना है।
इससे न तो हमें कुछ व्यक्तिगत लाभ मिल सकता है और न हम सामूहिक रूप से प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं।
इसलिए आत्मवंचना के इस मायाजाल से अपने को बाहर निकालने में हमें तुरन्त ही लग जाना चाहिये।
व्यक्तिगत विद्रोह की यह प्रबल भावना हममे से हर एक के हृदय में प्रबल वेग के साथ पैदा होनी चाहिये।
अपने सारे आचार-विचार और व्यवहार को हमें एक बार फिर नये सिरे से नये ढांचे में डालने का उद्योग करना चाहिये।
अपनी सारी वृत्तियों और प्रवृत्तियों को राष्ट्रोन्मुखी बना कर आर्य समाज में ऋषि के राष्ट्रवाद की स्थापना कर अपने देश में अपना राज्य और सारे संसार में अपने देश का ‘अखण्ड सार्वभौम चक्रवती साम्राज्य’ स्थापित करने का महान् स्वप्न देखना चाहिए।
[संदर्भ ग्रंथ : हाल ही में प्रकाशित “दयानंद का राष्ट्रवाद” पुस्तक, पृ.85-87। संपादकद्वय : श्री सहदेव शास्त्री एवं डॉ विवेक आर्य। इस सुंदर पुस्तक का प्रकाशन हितकारी प्रकाशन समिति, हिंडौन सिटी, राजस्थान ने किया है। 94 पृष्ठीय इस पुस्तक का मूल्य ₹ 70 है। प्रस्तुतकर्ता : भावेश मेरजा]
•••

10cric

bc game

dream11

1win

fun88

rummy apk

rs7sports

rummy

rummy culture

rummy gold

iplt20

pro kabaddi

pro kabaddi

betvisa login

betvisa app

crickex login

crickex app

iplwin

dafabet

raja567

rummycircle

my11circle

mostbet

paripesa

dafabet app

iplwin app

rummy joy

rummy mate

yono rummy

rummy star

rummy best

iplwin

iplwin

dafabet

ludo players

rummy mars

rummy most

rummy deity

rummy tour

dafabet app

https://rummysatta1.in/

https://rummyjoy1.in/

https://rummymate1.in/

https://rummynabob1.in/

https://rummymodern1.in/

https://rummygold1.com/

https://rummyola1.in/

https://rummyeast1.in/

https://holyrummy1.org/

https://rummydeity1.in/

https://rummytour1.in/

https://rummywealth1.in/

https://yonorummy1.in/

jeetbuzz

lotus365

91club

winbuzz

mahadevbook

jeetbuzz login

iplwin login

yono rummy apk

rummy deity apk

all rummy app

betvisa login

lotus365 login

betvisa login

https://yonorummy54.in/

https://rummyglee54.in/

https://rummyperfect54.in/

https://rummynabob54.in/

https://rummymodern54.in/

https://rummywealth54.in/

betvisa login

mostplay login

4rabet login

leonbet login

pin up aviator

mostbet login

Betvisa login

Babu88 login

jeetwin

nagad88

jaya9

joya 9

khela88

babu88

babu888

mostplay

marvelbet

baji999

abbabet

MCW Login

Jwin7 Login

Glory Casino Login

Khela88 App