पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गांधी के विजन को आगे बढ़ाने के नाम पर राजीव गांधी फाउंडेशन की स्थापना उनकी मृत्यु के एक माह के अंदर ही कांग्रेस के गांधी परिवार के प्रति वफादार नेताओं को साथ लेकर 21 जून, 1991 को की गयी थी. सोची समझी रणनीति के तहत सोनिया गांधी को फाउंडेशन का अध्यक्ष बनाया गया. नेहरू गांधी परिवार से जुड़ी अन्य संस्थाओं की तरह राजीव गांधी फाउंडेशन में भी ट्रस्टी के रूप में परिवार के प्रति निष्ठा रखने वाले कुछ दरबारीजनों के नाम देने आवश्यक थे, अतः राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के साथ डॉ. मनमोहन सिंह, पी. चिदंबरम, मोंटेक सिंह आहलूवालिया, सुमन दुबे, प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन, डॉ. अशोक गांगुली, संजीव गोयनका को राजीव गांधी फाउंडेशन से जोड़ा गया, विजय महाजन फाउंडेशन के सचिव व मुख्य कार्यकारी हैं.
1991 से राजीव गांधी फाउंडेशन ने क्या काम किये, इसका कोई ठोस व प्रभावी साक्ष्य कहीं नहीं मिलता. लेकिन कार्यों और उद्देश्यों को लेकर फाउंडेशन की वेबसाईट rgfindia.org पर जो जानकारी साझा की गयी है, उसके अनुसार वर्ष 1991 से 2009 तक फाउंडेशन ने साक्षरता, स्वास्थ्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, महिला और बाल विकास, निःशक्तजनों को सहायता, पंचायती राज संस्थाओं, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, और पुस्तकालयों सहित बहुत से बड़े क्षेत्रों में कामों को अंजाम दिया है. जबकि वास्तविकता ये है कि फाउंडेशन ने हाल के 18 वर्षों में मात्र 2900 से कुछ अधिक लोगों को ही लाभ पहुंचाया.
देश के अन्दर राजीव गांधी फाउंडेशन काम के बल पर तो नहीं, लेकिन अपने ख़ास कारनामों के बल पर ही चर्चा में सुनाई दिया है, वो भी चंदा लेने के लिए. आईएस जैसे कुख्यात आतंकियों और विश्वभर में जिहादी उन्मादियों से ताल्लुक रखने वाले इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन के प्रमुख जाकिर नाइक ने 9 साल पहले 2011 में राजीव गांधी फाउंडेशन को 50 लाख रुपए दिए थे. देशव्यापी शोर के बाद कांग्रेस ने जाकिर की डोनेशन की रकम वापस करने का प्रचार किया. राजीव गांधी फाउंडेशन देशविरोधी संगठनों से चंदा ले रहा था वो भी उस दौर में जब उसकी चेयरपर्सन कांग्रेस की भी अध्यक्ष और सत्ताधारी यूपीए सरकार की भी चेयरपर्सन थीं. 2004 से 2014 के बीच डॉ. मनमोहन सिंह की कठपुतली सरकार की संचालक सर्वशक्तिमान सोनिया गांधी ने जहां देश को विकास की पटरी से उतारने, मुस्लिम तुष्टीकरण, ईसाई प्रोत्साहन के साथ भ्रष्टाचार और महंगाई बढ़ाने का काम किया. इसी दौर में राजीव गांधी फाउंडेशन ने चीन सहित कई देशों से तो चंदा लिया ही भारत में प्रधानमंत्री राहत कोष से लेकर सभी मंत्रालयों और देश की नवरत्न कंपनियों से अकूत मात्रा में चंदा उगाही की. 2005-06 में राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से 3 लाख डॉलर (तब 90 लाख रुपए) मिले थे. इसके बाद 2009 में चाइनीज सरकार ने 10 लाख की एक और किश्त दी. फांउडेशन की एनुअल रिपोर्टमें इस डोनेशन का विवरण है. कानून के अनुसार कोई भी पार्टी या संस्था बिना सरकार की अनुमति के विदेश से पैसा नहीं ले सकती, लेकिन ये संभव शायद ऐसे ही था जैसे बिना सरकार के मुखिया के सोनिया और राहुल ने तत्कालीन विदेशमंत्री आनंद शर्मा के साथ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ किसी समझौते पर हस्ताक्षर कर लिए थे. चीन से मिले चंदे और चीन के कथित खुफिया संगठन चाइना एसोसिएसन फॉर इंटरनेशनल फ्रैंडली कांटैक्ट (सीएएफआइसी) से जुड़ाव फाउंडेशन की दरियादिली बयां करता है. विदेशी चंदे में आयरलैंड और लक्जमबर्ग की सरकारों के साथ यूरोपियन यूनियन और जर्मनी का एफ़.एन.एस. संगठन भी प्रमुख है.
जिस प्रधानमंत्री राहत कोष की दुहाई देते हुए सोनिया गांधी नहीं थकतीं और इसी कारण कोरोना महामारी के लिए स्थापित पीएम केयर्स फंड पर सवाल उठाते हुए कह रही थीं कि पीएम-केयर्स की पूरी रकम पीएम रिलीफ फंड में ट्रांसफर की जानी चाहिए, जिससे ऑडिट हो सके और ट्रांसपेरेंसी बनी रहे. पीएम केयर्स फंड के ऑडिट पर इतनी चिंता और राजीव गांधी फाउंडेशन को कभी कैग के ऑडिट के अधीन आने ही नहीं दिया. उसका राज भी यही है कि 2006 से सोनिया ने प्रधानमन्त्री राहत कोष से लगातार राजीव गांधी फाउंडेशन को चंदा दिलाया, जिसका प्रमाण फाउंडेशन की वार्षिक रिपोर्ट देती है.
यूपीए सरकार के कार्यकाल में 2004 से 2014 के बीच फाउंडेशन पर क्या देश के अन्दर, क्या विदेश से चंदे की खूब जमकर बारिश होती रही. डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के सभी मंत्रालयों, नवरत्न कंपनियों-ओएनएजीसी, सेल, गेल, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, ओरियंटल बैंक ऑफ कामर्स, हुडको, आइडीबीआई के अलावा उद्योगपतियों और निजी क्षेत्र के व्यवसायियों ने खूब धन वर्षा की.
जिस भगोड़े हीरा व्यापारी मेहुल चौकसी पर राहुल गांधी लगातार केंद्र सरकार को घेर रहे थे, उस मेहुल चौकसी ने भी गांधी परिवार के फाउंडेशन को भारी रकम दी थी. यह रकम मेहुल के स्वामित्व वाली कंपनी नविराज इस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दी गई थी. जिसका उल्लेख फाउंडेशन की वार्षिक रिपोर्ट में है.
अभी धीरे-धीरे और खुलासे होंगे, राजीव गांधी फाउंडेशन को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, विदेशी कंपनियों और सरकारों से मिली चंदे की अकूत राशि का हिसाब किताब तो देश को बताना ही पड़ेगा सोनिया और राहुल को. पिछले 6 वर्षों से सत्ता से बाहर होकर गांधी परिवार की देशविरोधी आक्रामकता और बेसिर पैर के सवाल काफी कुछ कह रहे हैं…..