नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन की नींव रखने के बाद अपने संबोधन में भगवान बसवेश्वर का स्मरण किया. उन्होंने कहा कि भले ही दुनिया मानती हो कि विश्व में लोकतंत्र की बुनियाद ‘मैग्नाकार्टा’ से रखी गई, लेकिन हकीकत कुछ और है. मैग्नाकार्टा से पहले ही भगवान बसवेश्वर ने लोकसंसद की न केवल रचना की थी, बल्कि उसके सुचारू संचालन की व्यवस्था भी की थी.
प्रधानमंत्री ने मैग्नाकार्टा से पहले भारत में संवैधानिक प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा, ‘हम देखते-सुनते हैं – दुनिया में 13वीं सदी में रचित मैग्नाकार्टा की बहुत चर्चा होती है. कुछ विद्वान इसे लोकतंत्र की बुनियाद भी बताते हैं, लेकिन ये बात भी उतनी ही सही है कि मैग्नाकार्टा से भी पहले 12वीं सदी में भगवान बसवेश्वर का ‘अनुभव मंटवम’ अस्तित्व में आ चुका था.’ ‘अनुभव मंटवम के रूप में उन्होंने लोक संसद का ना सिर्फ निर्माण किया था, बल्कि उसका संचालन भी सुनिश्चित किया था. भगवान बसवेश्वर ने कहा था, यह अनुभव मंटवम एक ऐसी जनसभा है जो राज्य और राष्ट्र के हित में और उनकी उन्नति के लिए सभी को एकजुट होकर काम करने के लिए प्रेरित करती है. अनुभव मंटवम लोकतंत्र का ही तो एक स्वरूप था.’
1131 ईस्वी में हुआ था भगवान बसवेश्वर का जन्म
संत बसवेश्वर का जन्म 1131 ईसवी में बागेवाडी (कर्नाटक के संयुक्त बीजापुर जिले में स्थित) में हुआ था. ब्राह्मण परिवार में जन्मे बसवेश्वर के पिता का नाम मादरस और माता का नाम मादलाम्बिके था. आठ साल की उम्र में बसवेश्वर का उपनयन संस्कार (जनिवारा- पवित्र धागा) हुआ, लेकिन विद्रोही बालमन इस परंपरा में नहीं टिका और उन्होंने उस धागे को तोड़ घर त्याग दिया. बसवेश्वर यहां से कुदालसंगम (लिंगायतों का प्रमुख तीर्थ स्थल) पहुंचे, जहां उन्होंने सर्वांगीण शिक्षा प्राप्त की.
बाद के दिनों में संत बसवेश्वर कल्याण पहुंचे. जहां उस समय कलचुरी साम्राज्य के शासक बिज्जाला का शासन (1157-1167 ईसवी) था. बसवेश्वर के ज्ञान का सम्मान करते हुए कलचुरी साम्राज्य में उन्हें कर्णिका (अकाउंटेंट) का पद दिया गया. बाद में वह अपने प्रशासकीय कौशल के बल पर राजा बिज्जाला के प्रधानमंत्री बने. लेकिन बसवेश्वर को असल चिंता समाज की बिगड़ी हुई सामाजिक-आर्थिक दशा की थी. समाज में गरीब-अमीर की खाई लगातार चौड़ी हो रही थी.
बसवेश्वर ने इन सभी बुराइयों के खिलाफ जंग छेड़ दी. उनके लेखन और दर्शन ने समाज में क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत की. उन्होंने अपने अनुभवों को एक गद्यात्मक-पद्यात्मक शैली में ‘वचन’ (कन्नड़ की एक साहित्यिक विधा) के रूप में लिखा.
बसवेश्वर ने वीरशैव लिंगायत समाज बनाया, जिसमें सभी धर्म के प्राणियों को लिंग धारण कर एक करने की कोशिश की. बसवेश्वर ने सबसे पहले कुरीतियों को निशाना बनाया. उनके महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उनके युग को ‘बसवेश्वर युग’ का नाम दिया गया. बसवेश्वर को ‘भक्ति भंडारी बसवन्न’, ‘विश्वगुरु बसवण्ण’ और ‘जगज्योति बसवण्ण’ के नाम से भी जाना जाता है.
चोल साम्राज्य के दौरान पंचायती सिस्टम का जिक्र
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस कालखंड के एक और पहले जाएं तो तमिलनाडु में चेन्नै से 80-85 किमी दूर उत्तरामेरूर नाम के गांव में एक बहुत ही ऐतिहासिक साक्ष्य दिखाई देता है. इस गांव में चोल साम्राज्य के दौरान 10वीं शताब्दी में पत्थरों में तमिल में लिखी गई पंचायत व्यवस्था का वर्णन है. इसमें बताया गया है कि कैसे हर गांव कुड़ूंबों में कैटगराइज किया जाता था. इन्हें आज की भाषा में एक वॉर्ड कहा जा सकता है.
‘उन कुड़ूंबों से एक-एक प्रतिनिधि महासभा में भेजा जाता था, जैसा आज भी होता है. इस गांव में हजार वर्ष पूर्व जो महासभा लगती थी, वो आज भी वहां मौजूद है. एक हजार वर्ष पूर्व बनी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक और बात बहुत महत्वपूर्ण थी. उस शिलालेख में वर्णन है कि जनप्रतिनिधि को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने का भी प्रावधान था. नियम था कि जो जनप्रतिनिधि और उसके करीबी रिश्तेदार अपनी संपत्ति का ब्योरा नहीं देंगे, वो चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. कितने साल पहले कितनी बारीकी से हर पहलू पर सोचा गया और उन्हें अपनी लोकतांत्रिक परंपराओं का हिस्सा बनाया गया.’
क्या है मैग्नाकार्टा
मैग्नाकार्टा की रचना 1225 ईस्वी में इंग्लैंड में हुआ था. मैग्नाकार्टा लैटीन भाषा में लिखी गई. जिसके जरिए इंग्लैंड के तत्कालीन राजा जॉन ने अपनी इच्छाओं को कानून के दायरे में बांधना स्वीकार किया. उसने सामंतों को कुछ अधिकार दिए और कुछ कानूनी प्रक्रियाओं के पालन का भी वचन दिया. इसी मैग्नाकार्टा ने प्रजा के कुछ अधिकारों की रक्षा का दायित्व राजा पर निर्धारित किया. इसके तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus) की भी इजाजत दी गई. यह सामंतों और आम जनता के लिए वैधानिकता का प्रतीक बना और ब्रिटेन में संवैधानिक प्रक्रिया के तहत राजकाज का शुभारंभ हुआ.