लोकेन्द्र सिंह
“सावरकर बंधुओं की प्रतिभा का उपयोग जन-कल्याण के लिए होना चाहिए. अगर भारत इसी तरह सोया पड़ा रहा तो मुझे डर है कि उसके ये दो निष्ठावान पुत्र सदा के लिए हाथ से चले जाएंगे. एक सावरकर भाई को मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूँ. मुझे लंदन में उनसे भेंट का सौभाग्य मिला था. वे बहादुर हैं, चतुर हैं, देशभक्त हैं. वे क्रांतिकारी हैं और इसे छिपाते नहीं. मौजूदा शासन प्रणाली की बुराई का सबसे भीषण रूप उन्होंने बहुत पहले, मुझसे भी काफी पहले, देख लिया था. आज भारत को, अपने देश को, दिलोजान से प्यार करने के अपराध में वे कालापानी भोग रहे हैं.” आपको किसी प्रकार का भ्रम न हो इसलिए बता देते हैं कि स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर और उनके बड़े भाई गणेश सावरकर के लिए ये विचार किसी हिंदू महासभा के नेता के नहीं हैं, बल्कि उनके लिए यह सब अपने समाचार-पत्र ‘यंग इंडिया’ में महात्मा गांधी ने 18 मई, 1921 को लिखा था. महात्मा गांधी जी ने यह सब उस समय लिखा था, जब स्वातंत्र्यवीर सावरकर अपने बड़े भाई गणेश सावरकर के साथ अंडमान में कालापानी की कठोरतम सजा काट रहे थे. (हार्निमैन और सावरकर बंधु, पृष्ठ-102, सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय)
भारत माता के वीर सपूत सावरकर के बारे में आज अनाप-शनाप बोलने वाले कम्युनिस्टों और महात्मा गांधी के ‘नकली उत्तराधिकारियों’ को शायद यह पता ही नहीं होगा कि सावरकर बंधुओं के प्रति महात्मा कितना पवित्र और सम्मान का भाव रखते थे. गांधीजी की उपरोक्त टिप्पणी में इस बात पर गौर कीजिए, जिसमें वे कह रहे हैं कि – “मौजूदा शासन प्रणाली (ब्रिटिश सरकार) की बुराई का सबसे भीषण रूप उन्होंने (वीर सावरकर) ने बहुत पहले, मुझसे भी काफी पहले (गांधी जी से भी काफी पहले), देख लिया था.” इस पंक्ति में महात्मा वीर सावरकर की दृष्टि और उनकी निष्ठा को स्पष्ट रेखांकित कर रहे हैं. लेकिन, वीर सावरकर के विरुद्ध विषवमन करने वालों ने न तो महात्मा गांधी को ही पढ़ा है और न ही उन्हें सावरकर परिवार के बलिदान का सामान्य ज्ञान है. नकली लोग बात तो गांधी जी की करते हैं, उनकी विचारधारा के अनुयायी होने का दावा करते हैं, लेकिन उनके विचार का पालन नहीं करते हैं. जुबान पर गांधी जी का नाम है, लेकिन मन में घृणा-नफरत और हिंसा भरी हुई है. इसी घृणा और हिंसा के प्रभाव में ये लोग उस युगद्रष्ट महापुरुष की छवि को बिगाड़ने के लिए षड्यंत्र रचते हैं, जिसकी प्रशंसा स्वयं महात्मा गांधी ने की है. महात्मा गांधी और विनायक दामोदर सावरकर की मुलाकात लंदन में 1909 में विजयादशमी के एक आयोजन में हुई थी. लगभग 12 वर्ष बाद भी महात्मा गांधी की स्मृति में यह मुलाकात रहती है और जब वे अपने समाचार-पत्र यंग इंडिया में सावरकर के कारावास और उनकी रिहाई के संबंध में लिखते हैं, तो पहली मुलाकात का उल्लेख करना नहीं भूलते. इसका एक ही अर्थ है कि क्रांतिवीर सावरकर और भारत की स्वतंत्रता के लिए उनके प्रयासों ने महात्मा गांधी के मन पर गहरी छाप छोड़ी थी.
इससे पूर्व भी महात्मा गांधी ने 26 मई, 1920 को यंग इंडिया में ‘सावरकर बंधु’ शीर्षक से एक विस्तृत टिप्पणी लिखी है. यह टिप्पणी उन सब लोगों को पढ़नी चाहिए, जो क्रांतिवीर सावरकर पर तथाकथित ‘क्षमादान याचना’ का आरोप लगाते हैं. इस टिप्पणी में हम तथाकथित ‘माफीनामे’ प्रसंग को विस्तार से समझ पाएंगे और यह भी जान पाएंगे कि स्वयं महात्मा गांधी जी सावरकर बंधुओं की मुक्ति के लिए कितने आग्रही थे? सावरकर बंधुओं के साथ हो रहे अन्याय पर भी महात्मा जी ने प्रश्न उठाया है. इस टिप्पणी में महात्मा गांधी ने उस ‘शाही घोषणा’ को भी उद्धृत किया है, जिसके अंतर्गत उस समय अनेक राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जा रहा था. वे लिखते हैं कि – “भारत सरकार और प्रांतीय सरकारों ने इस संबंध में जो कार्रवाई की उसके परिणामस्वरूप उस समय कारावास भोग रहे बहुत लोगों को राजानुकम्पा का लाभ प्राप्त हुआ है. लेकिन कुछ प्रमुख ‘राजनीतिक अपराधी’ अब भी नहीं छोड़े गए हैं. इन्हीं लोगों में मैं सावरकर बंधुओं की गणना करता हूँ. वे उसी माने में राजनीतिक अपराधी हैं, जिस माने में वे लोग हैं, जिन्हें पंजाब सरकार ने मुक्त कर दिया है. किंतु इस घोषणा (शाही घोषणा) के प्रकाशन के आज पाँच महीने बाद भी इन दोनों भाइयों को छोड़ा नहीं गया है.” इस टिप्पणी से स्पष्ट है कि महात्मा गांधी यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि अंग्रेज सरकार जल्द से जल्द सावरकर बंधुओं को स्वतंत्र करे. सावरकर बंधुओं के प्रकरण में अपनायी जा रही दोहरी नीति को उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से जनता के बीच उजागर कर दिया. महात्मा गांधी अपने इस आलेख में अनेक तर्कों से यह इस सिद्ध कर रहे थे कि ब्रिटिश सरकार के पास ऐसा कोई कारण नहीं कि वह अब सावरकर बंधुओं को कैद में रखे, उन्हें तुरंत मुक्त करना चाहिए. हम जानते हैं कि महात्मा गांधी अधिवक्ता (बैरिस्टर) थे. सावरकर बंधुओं पर लगाई गईं सभी कानूनी धाराओं का उल्लेख और अन्य मामलों के साथ तुलना करते हुए गांधी जी ने इस लेख में स्वातंत्र्यवीर सावरकर बंधुओं का पक्ष मजबूती के साथ रखा है. उस समय वाइसराय की काउंसिल में भी सावरकर बंधुओं की मुक्ति का प्रश्न उठाया गया था, जिसका जिक्र भी गांधी जी ने किया है. काउंसिल में जवाब में कहा गया था कि ब्रिटिश सरकार के विचार से दोनों भाइयों को छोड़ा नहीं जा सकता. इसका उल्लेख करते हुए गांधी जी ने अपने इसी आलेख के आखिर में लिखा है – “इस मामले को इतनी आसानी से ताक पर नहीं रख दिया जा सकता. जनता को यह जानने का अधिकार है कि ठीक-ठीक वे कौन-से कारण हैं, जिनके आधार पर राज-घोषणा के बावजूद इन दोनों भाइयों की स्वतंत्रता पर रोक लगाई जा रही है, क्योंकि यह घोषणा तो जनता के लिए राजा की ओर से दिए गए ऐसे अधिकार पत्र के समान है जो कानून का जोर रखता है.”
आज जो दुष्ट बुद्धि के लोग वीर सावरकर की अप्रतिम छवि को मलिन करने का दुष्प्रयास करते हैं, उन्हें महात्मा गांधी की यह टिप्पणी इसलिए भी पढ़नी चाहिए क्योंकि इसमें गांधी जी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए दोनों भाइयों के योगदान को भी रेखांकित किया है. यह पढ़ने के बाद शायद उन्हें लज्जा आ जाए और वे हुतात्मा का अपमान करने से बाज आएं. हालाँकि, संकीर्ण मानसिकता के इन लोगों की बुद्धि न भी सुधरे तो भी कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि जो भी सूरज की ओर गंदगी उछालता है, उससे उनका ही मुंह मैला होता है. क्रांतिवीर सावरकर तो भारतीय इतिहास के चमकते सूरज हैं, उनका व्यक्तित्व मलिन करना किसी के बस की बात नहीं. स्वातंत्र्यवीर सावरकर तो लोगों के दिलों में बसते हैं. युगद्रष्टा सावरकर भारत के ऐसे नायकों में शामिल हैं, जो यशस्वी क्रांतिकारी हैं, समाज उद्धारक हैं, उच्च कोटि के साहित्यकार हैं, राजनीतिक विचारक एवं प्रख्यात चिंतक भी हैं. भारत के निर्माण में उनका योगदान कृतज्ञता का भाव पैदा करता है. उनका नाम कानों में पड़ते ही मन में एक रोमांच जाग जाता है. गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है. श्रद्धा से शीश झुक जाता है.
महात्मा गांधी की दृष्टि में स्वातंत्र्यवीर सावरकर – भारत माता के निष्ठावान पुत्र क्रांतिवीर सावरकर(लेखक विश्व संवाद केंद्र, मध्यप्रदेश के कार्यकारी निदेशक हैं.)