पहला टुकड़ा – पूर्वी पाकिस्तान / १
प्रशांत पोळ
१४ अगस्त, १९४७ को पाकिस्तान बनने के बाद, पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे घनी बसाहट वाला प्रदेश (राज्य) था – पूर्वी बंगाल. पाकिस्तान के खाते में रेडक्लिफ़ ने बंगाल का पूर्वी हिस्सा दिया था, जबकि भारत को पश्चिमी बंगाल मिला था.
मजेदार बात देखिये – पाकिस्तान का जन्म जिसके कारण हुआ, उस मुस्लिम लीग की स्थापना हुई बंगाल में. ३० दिसंबर १९०६ को, जब बंग – भंग का आंदोलन अपने चरम पर था, तब ढाका के नवाब सलिमुल्लाह खान ने मुस्लिम लीग की स्थापना की थी. इसके गठन में मुहम्मद अली जिन्ना, आगा खान (तृतीय), ख्वाजा सलिमुल्लाह और हाकिम अजमल खान शामिल थे.
पाकिस्तान बनने की प्रक्रिया में, सबसे बड़ी भूमिका रही, बंगाल के ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ की. अलग से पाकिस्तान बनाने पर ज़ोर देने के लिए बंगाल की मुस्लिम लीग सरकार ने १६ अगस्त, १९४६ को डायरेक्ट एक्शन डे की घोषणा की. बंगाल के मुस्लिम लीगी मुख्यमंत्री थे, सुहरावर्दी. उन्होंने कलकत्ता में, एक ही दिन, दस हजार हिन्दुओं का कत्ल कर के खून की नदियां बहा दीं. बस, यही टर्निंग पॉइंट था, जिसके कारण काँग्रेस झुक गई. पहले अखंड भारत की बात करने वाली काँग्रेस, इस ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के हत्याकांड से सहम गयी, डर गयी. और फिर ३ जून, १९४७ को जब माउंटबेटन ने विभाजन के साथ स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा, तो काँग्रेस ने तुरंत अपने कार्यकारणी की दिल्ली में बैठक बुलाई. १४ और १५ जून, १९४७ को संपन्न इस काँग्रेस कार्यकारिणी ने भारत के विभाजन के प्रस्ताव को स्वीकार किया और पाकिस्तान बनने का रास्ता साफ हुआ. अर्थात् पाकिस्तान की निर्मिति में बंगाल का बहुत बड़ा योगदान था.
लेकिन पाकिस्तान की कल्पना जिस व्यक्ति ने सबसे पहले की थी, ‘पाकिस्तान’ यह नाम जिस व्यक्ति ने सबसे पहले सुझाया, उस रहमत अली की कल्पना में पाकिस्तान के गठन में बंगाल कहीं नहीं था.
यानि पाकिस्तान बनने के बाद, उसके सबसे बड़े राज्य ‘पूर्व बंगाल’ का कोई भी उल्लेख ‘पाकिस्तान’ के नाम में नहीं था…!
लेकिन पाकिस्तान के निर्माण में और नए पाकिस्तान की रचना में बंगाल का हिस्सा बड़ा था. पाकिस्तान के गठन के लिए, ११ अगस्त, १९४७ को पाकिस्तानी कॉंस्टीट्यूएंट असेंबली की पहली बैठक हुई, जिसकी अध्यक्षता कर रहे थे, जोगेन्द्र नाथ मण्डल. ये बंगाल से थे. पूर्व बंगाल के कीर्तनखोला नदी के किनारे बसे बारिसाल गांव में पले – बढ़े.
पाकिस्तान सरकार का पहला मंत्रिमंडल बना, उनमें प्रमुख मंत्री रहे हमीदुल हक चौधरी भी पूर्व पाकिस्तान से थे, जो बाद में विदेश मंत्री बने. बंगाल के ही सर ख्वाजा नजिमुद्दीन, पाकिस्तान के पहले मंत्रिमंडल में मंत्री रहे, जो बाद में सन् १९५१ में डेढ़ वर्ष के लिए पाकिस्तान के दूसरे प्रधानमंत्री भी रहे. पाकिस्तान के तीसरे प्रधानमंत्री मोहम्मद आली बोगरा भी पूर्वी बंगाल से थे.
पाकिस्तान के पांचवें प्रधानमंत्री भी बंगाल से थे, सुहरावर्दी. डायरेक्ट एक्शन डे के कारण (कु) प्रसिद्ध, उस समय वे अखंड बंगाल के मुख्यमंत्री थे.
पाकिस्तान में बंगाल का प्रतिनिधित्व करने वाले अंतिम प्रधानमंत्री थे, नुरुल अमीन. पाकिस्तान के इतिहास में सबसे कम समय प्रधानमंत्री रहने का कीर्तिमान इनके नाम पर है. ये १३ दिन के लिए प्रधानमंत्री तब बने, जब पूर्वी बंगाल में ‘मुक्ति-बाहिनी’ द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ छापामार युद्ध जारी था, और पाकिस्तान – भारत के बीच में भी युद्ध छिड़ गया था. लेकिन नुरुल अमीन, बांग्ला देश के लिए आंदोलन चलाने वाले अवामी लीग से नहीं थे. वे पाकिस्तानी मुस्लिम लीग पार्टी के सदस्य थे. अवामी लीग के आंदोलन को और उनके नेता शेख मुजीबुर्रहमान को शह देने के लिए, अमीन साहब को प्रधानमंत्री बनाया गया था, जो कुछ वर्ष पहले विधानसभा का चुनाव भी हार चुके थे.
अर्थात, १४ अगस्त १९४७ को, पाकिस्तान बनने के बाद से और पूर्वी बंगाल, पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य बनने के बाद, लगभग १९७१ तक (अर्थात पूर्वी बंगाल का, ‘बांग्ला देश’ के रूप में उदय होने तक), पाकिस्तान के शासन प्रणाली में पूर्वी बंगाल को प्रतिनिधित्व मिला. लेकिन पाकिस्तान की राजधानी पहले कराची और बाद में रावलपिंडी होने के कारण, नियंत्रण हमेशा पश्चिम पाकिस्तान के हाथों में ही रहा.
यद्यपि पाकिस्तान के बनने में बंगाल की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण थी, किन्तु बांग्ला संस्कृति और पश्चिम पाकिस्तान की सिंधी – पंजाबी संस्कृति में जमीन आसमान का अंतर था. भाषा अलग थी, वेषभूषा अलग थी, खान-पान अलग था, रीति – रिवाज भी अलग थे. इसलिए एक ही धर्म के होने के बाद भी पूर्व पाकिस्तान के बंगाली समुदाय से पश्चिम पाकिस्तानियों की कभी नहीं पटी.
पाकिस्तान बनने के बाद, मार्च १९४८ में कायदे आजम जिन्ना ने पूर्वी पाकिस्तान (अर्थात पूर्वी बंगाल) का दौरा किया. १९ मार्च को ढाका में आए और २४ मार्च को उन्होंने ढाका यूनिवर्सिटी के कर्जन हॉल में विद्यार्थियों को संबोधित किया. सारे विद्यार्थी बांग्ला भाषी थे. जिन्ना तो बांग्ला जानते नहीं थे. वे तो उर्दू भी ठीक से नहीं बोल पाते थे. इसलिए उन्होंने अंग्रेजी में भाषण दिया.
भाषण का सार था, ‘पाकिस्तान में केवल उर्दू चलेगी. उर्दू इस एक भाषा से सारा पाकिस्तान जुड़ेगा.’ केवल यूनिवर्सिटी ही नहीं, तो जिन्ना ने २१ मार्च को ढाका के रेसकोर्स मैदान (वर्तमान में – सुहारावर्दी उद्यान) पर आयोजित स्वागत समारोह में भी यही बात कही. उनके इस अंग्रेजी भाषण के शब्द थे –
Let me make it very clear to you that the state language of Pakistan is going to be Urdu and no other language. Anyone, who tries to mislead you, is really the enemy of Pakistan. Without one state language, no nation can remain tied up solidly together and function. Look at the history of other countries. Therefore, so far as the state language is concerned, Pakistan’s shall be Urdu.’
(मैं आपको यह स्पष्ट करना चाहता हूँ, कि पाकिस्तान की राजभाषा कोई दूसरी और नहीं, तो उर्दू ही होगी. (इस संदर्भ में) जो भी आपको गुमराह करने की कोशिश करेगा, वह पाकिस्तान का दुश्मन होगा. किसी एक राजभाषा के बगैर कोई भी राष्ट्र मजबूती से न तो जुड़ सकता है, और न ही काम कर सकता है. जरा और देशों का इतिहास भी देखिए. इसलिए, पाकिस्तान की राजभाषा का प्रश्न है, तो वह उर्दू ही है.)
वापस कराची जाते समय भी उन्होंने २८ मार्च को, ढाका रेडियो स्टेशन पर ‘केवल उर्दू’ इस पॉलिसी को दोहराया.
(क्रमशः)