पाकिस्तान न केवल अल्पसंख्यकों अपितु पत्रकारों के लिए भी खतरनाक देश बना हुआ है. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) ने ग्लोबल जर्नलिज़्म पर श्वेत पत्र में पांच देशों को सूचीबद्ध किया है. पाकिस्तान में 1990 के बाद अब तक करीब 138 पत्रकारों की हत्या हुई है, जिसके चलते उसे पत्रकारिता के लिए खतरनाक देश कहा गया है.
पाकिस्तानी समाचार पत्र डॉन के अनुसार ‘द लिस्ट ऑफ जर्नलिस्ट्स किल्ड (1990-2020) में बताया गया है कि इस दौरान 2,658 पत्रकारों ने ड्यूटी के दौरान अपनी जान गंवाई. सूची में पत्रकारिता के अभ्यास के लिए इराक सबसे खतरनाक देशों की सूची में सबसे ऊपर है, क्योंकि यहां 340 पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई है. उसके बाद मेक्सिको में 178 पत्रकारों, फिलीपींस में 178 पत्रकारों, पाकिस्तान में 138 पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई है.
डॉन की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने 15 देशों में हमलों, बम विस्फोटों और क्रॉस फायरिंग की घटनाओं में अब तक 42 पत्रकारों और मीडिया कर्मचारियों की हत्या दर्ज की है. 13 हत्याओं के साथ मेक्सिको पांच साल में चौथी बार सूची में सबसे ऊपर है. इसके बाद पाकिस्तान का नंबर आता है, जहां पर 5 पत्रकारों की मौत हुई है. फिलीपींस, सोमालिया और सीरिया में दो-दो पत्रकारों की मौत हुई है. जबकि छह देश कैमरून, होंडुरास, पराग्वे, रूस , स्वीडन और यमन, में 1-1 पत्रकार की मौत हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय उप-महाद्वीप में पाकिस्तान में पत्रकारों की हत्याएं 1990 के बाद से लगभग हर साल सामने आई है. जो एशिया प्रशांत क्षेत्र में पत्रकारों की कुल मृत्यु का 40 प्रतिशत है.
फ्रीडम नेटवर्क की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पाकिस्तान को पत्रकारों के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक के रूप में स्थान दिया जाता है. क्योंकि 2000 के बाद से पाकिस्तान में 140 से अधिक पत्रकार मारे गए हैं. पत्रकार और मानवाधिकार अधिवक्ता आईए रहमान ने डॉन अखबार में लिखा है कि पाकिस्तान में कानून द्वारा मुकदमे का सामना करने वाले पत्रकारों के खिलाफ इस साल की रिपोर्ट उन सभी को बहुत परेशान करेगी, जो सुशासन और सामाजिक प्रगति के लिए एक मजबूत और स्वतंत्र मीडिया के अस्तित्व पर विचार करते हैं.
एक पत्रकार मुबाशिर जैदी ने खुलासा किया कि संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) ने इस साल सितंबर तक 49 पत्रकारों के खिलाफ मामले दर्ज किये हैं. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने भी पीटीआई सरकार की कार्रवाई की निंदा करते हुए मांग की कि राज्य को इस तरह की कार्रवाइयों से बचना चाहिए और राजनीतिक असंतोष को रोकने के लिए एफआईए का उपयोग करना बंद करना चाहिए. इमरान खान ने दावा किया कि पाकिस्तान में मीडिया पर कोई रोक नहीं है. लेकिन उसके बावजूद हत्याएं और गिरफ्तारियां सरकार के दावों का पोल खोलती है.