October 5, 2024

हमारे जगदेव राम जी

छत्तीसगढ़ राज्य के जशपुर नगर के पास बसा एक छोटा सा जनजाति गांव कोमडो. 8 अक्तूबर, 1949 को इसी छोटे गांव के अघनु राम और बुचुबाई के घर में जब एक बालक ने जन्म लिया, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि आगे जाकर यह बालक न केवल अपने गांव का, अपने समाज का नाम रोशन करेगा. बल्कि देशभर के जनजाति समाज की सर्वांगीण प्रगति का विचार करने वाला एक सशक्त वाहक बन जाएगा.

बालक का नाम था जगदेव राम. यानि जगत के ‘राम’. आगे चलकर तपस्वी बन, वनवासियों के दुःख हरने, उन्हें संगठन शक्ति से परिचय करा कर राष्ट्र जीवन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की प्रेरणा देने के लिए जगदेव राम जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया. जीवन पर्यन्त संसारी व्यवहारों से जल-कमल वत रहने का संकल्प निभाते रहे.

चार बहनें और तीन भाई ऐसे सात भाई- बहनों में जगदेव राम सबसे बड़े थे. कोमडो गांव में ही जगदेव राम की प्राथमिक शिक्षा हुई. इसी छोटे से गांव में शाम के समय जशपुर नगर से शरद काले नाम के एक स्वयंसेवक बच्चों के साथ खेलने के लिए आते थे. यह छोटा बालक भी इसमें शामिल हुआ. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विशाल महासागर से उनका यह पहला परिचय था. केवल खेलने के लिए आने वाले इस बालक को तब यह पता भी नहीं था कि यह शाखा ही उसके जीवन को, उसके विचारों को एक अलग मोड़ पर पहुंचाएगी.

सन् १९६५ में ग्राम सिन्तोगा में संघ का शीत शिविर लगा था. कोमडो ग्राम से स्वयंसेवक के नाते जगदेव राम जी पहली बार वर्ग में आए थे. जगदेव राम जी सभी कार्यक्रमों में उत्साह के साथ भाग लेते थे. उनका कंठ अत्यंत मधुर और कंठस्थ करने की क्षमता अद्भुत थी. जीवन में पहला गीत याद करके बौद्धिक के पहले गाने का अवसर उन्हें मिला. गीत था…. बने हम हिन्द के योगीधरेंगे ध्यान भारत का

इस गीत का उनके जीवन पर इतना प्रभाव रहा कि प्रखर संघ संस्कारों के कारण भारत माता पर उनका ध्यान जो केंद्रित हुआ था, उसे जीवन के अंत तक उन्होंने कभी भटकने नहीं दिया. आगे चल कर संघ के तीनों वर्षो का प्रशिक्षण प्राप्त किया. जशपुर नगर में ही एम. ए. तक पढ़ाई पूर्ण की. शारीरिक शिक्षण विषय की डिग्री भी उन्होंने हासिल की. बाद में कल्याण आश्रम में शिक्षक बनकर आए. स्वयं के अध्ययनशील स्वभाव और परिश्रम से उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, उड़िया, संस्कृत भाषा का ज्ञान विकसित किया. कल्याण आश्रम के विद्यालय में आने के बाद आश्रम के संस्थापक वनयोगी बाला साहब देशपांडे जी से उनका गहरा संबंध निर्माण हुआ. बालासाहब जी के सान्निध्य में मानो उनको जीवन का ध्येय मार्ग ही मिल गया. उन्होंने अपना जीवन सर्व संग परित्याग करके एक संत की तरह वनवासी समाज की सेवा के माध्यम से भारत माता के चरणों में समर्पित करने का संकल्प लिया.

जगदेव राम जी के संकल्प को कुछ यूँ वर्णन कर सकते हैं –

‘ओ मेरे देश की धूल तूझ पर माथा मेरा टिकाता हूँ.

तुम धुली-मिली मेरे तन में और समा गई मन-प्राणों में..

वह श्याम वर्ण न कोमल स्वरूप अन्तरतम में है गूंथा हुआ.

मेरे देश की श्यामल धूल वार दिया तुज पर जीवन का फूल…

संकल्प तो हो गया किन्तु सार्थक कैसे हो?

उनका परम भाग्य रहा कि हीरे जवाहरतों के पारखी पूज्य वनयोगी बालासाहब देशपांडे जी ने उन्हें ऐसा तराशा कि कालांतर में यह लाल अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम का मुकुट-मणि बन गया. हम कह सकते है कि बालासाहब के मानस-पुत्र और श्रेष्ठ वारिस थे. जैसे रामकृष्ण परमहंस ने सारी साधना एक दिन विवेकानंद में परावर्तित कर दी थी, वैसे ही कटक में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में बालासाहब ने कल्याण आश्रम नाम की सारी पूंजी जगदेव राम जी के समर्थ हाथों में सौंप दी. सहायक के नाते पहले बालासाहब देशपांडे जी के साथ और बाद में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद जगदेव राम जी का देशभ्रमण तीव्र गति से प्रारम्भ हुआ. कोमडो जैसे एक छोटे से गांव में जन्मा एक सामान्य सा व्यक्ति संपूर्ण देश के एक गणमान्य संगठन अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम का राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गया. संपूर्ण देश उन्हें जगदेव राम जी नाम से पहचानने लगा.

वैसे तो जगदेव राम जी में प्रारंभ से ही संत के गुण थे. पूज्य संत गहिरा गुरूजी का उन पर गहरा प्रभाव था. एक बार जशपुर से १५३ किमी दूर कैलाश गुफा में गहिरा गुरु जी द्वारा आयोजित १५ दिन के शिविर में भी उपस्थित रहे थे. शिविर में श्री गहिरा गुरू जी द्वारा धर्म- संस्कृति पर दिए व्याख्यान, प्रवचन, रात्रि में रामायण की चौपाई पर कीर्तन के साथ नृत्य, इन सबसे जगदेव राम जी काफी प्रभावित हुए थे. इसी शिविर में जागरण के लिए की गई पदयात्रा में नाचते गाते भजन एवं रामायण कथा सुनाने वाले झांगुल मामा ने भी उन पर गहरी छाप छोड़ी. वे स्वयं कहते हैं कि इन १५ दिनों में जो एक सुखद अनुभूति मुझे हुई, और जिन संस्कारों का प्रभाव मेरे व्यक्तित्व और मन पर हुआ, उसे मैं आज तक नहीं भूला हूं. इसी प्रकार श्री मोरुभैया केतकर ,श्री. शर्माजी, श्री महीपति चिटके जी, श्री भैय्या जी काणे का सान्निध्य भी जगदेव राम जी का व्यक्तित्व विकसित करने में सहाय्यभूत रहा.

वनयोगी बालासाहब देशपाण्डे जी के पश्चात जगदेव राम जी २५ वर्ष तक कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं, उसके कारण देश को उनके नेतृत्व का, कर्तृत्व का परिचय हुआ. जशपुर के पास का कोमड़ो गाँव और वहाँ के एक किसान परिवार के बेटे ने, मानो जनजाति नायक के रूप में अपनी भूमिका प्रस्तुत की. खेलकूद यह कल्याण आश्रम के विभिन्न आयामों में से एक महत्वपूर्ण आयाम है. इस आयाम के प्रारम्भिक समय में वनयोगी बाला साहब देशपाण्डे हमारे बीच उपस्थित थे, परन्तु उनके पश्चात जगदेव राम जी ने ही समय-समय पर स्वयं रूचि लेकर आयाम को गति प्रदान की. जब जब राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता का आयोजन होता था तो जगदेव जी स्वयं बड़े उत्साह से सहभागी होते थे. महिला कार्य, जनजाति हित रक्षा, ग्राम विकास, विभिन्न जनजाति संगठनों से संपर्क ऐसे कई आयाम कल्याण आश्रम के कार्य से जुड़ गए. यह सब आयाम सुचारू रूप से चले और अधिक प्रभावी पद्धति से इसका संचालन हो, इसके लिए जगदेव राम जी का विशेष मार्गदर्शन कार्यकर्ताओं को मिलता था.

गुजरात के डांग जिला में 2006 को आयोजित शबरी कुंभ के सफल आयोजन के समय जगदेव राम जी सुविधा-असुविधाओं के बीच कुंभ परिसर में ही रहे. सारी व्यवस्थाएँ सुचारू रूप से चलें इस हेतु ह़ज़ारों कार्यकर्ताओं का उन्होंने मार्गदर्शन किया. उसी प्रकार उज्जैन का अर्धकुम्भ हो या प्रयाग का महाकुम्भ दोनों कुम्भ में पवित्र स्नान, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं संतों की धर्मसभा ऐसे कार्यक्रम हुए. यह एक ऐतिहासिक घटना थी. सभी कार्यक्रमों में जगदेव राम जी आग्रहपूर्वक उपस्थित रहे थे. कुम्भ में जनजाति जन प्रतिनिधियों के समारोह में भी उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए थे. इन सभी कुंभ मेले में जनजाति समाज बड़ी संख्या में सहभागी हुआ. इन प्रयासों के कारण जनजाति समाज में ‘तू मैं एक रक्त’ एकात्मता भाव का अद्भुत संचार हुआ.

जनजाति समाज में जागरण करना है तो उसे अतीत का स्मरण कराना चाहिए. यह बात हमने पहले कभी सुनी होगी. जगदेव जी ने रोहतास गढ़ यात्रा का प्रारम्भ कर ऐसा ही कुछ करके दिखाया. कार्यकर्ताओं को लेकर एक बार वे स्वयं उस स्थान पर गए जो उराँव जनजाति के लिए प्रेरणास्थली था. कुछ वर्ष पूर्व तो वहाँ कोई जाता नहीं था. माघी पूर्णिमा के निमित्त वहाँ कार्यक्रम की योजना बनी. आसपास के क्षेत्र से जनजाति बन्धुओं को एकत्रित कर एक बड़ा आयोजन किया गया. कई नेताओं को इस निमित्त निमंत्रित किया. प्रतिवर्ष जगदेव जी ने स्वयं वहाँ उपस्थित रह कर समारंभ को भव्यता प्रदान की. आज तो उस कार्यक्रम को मानो एक यात्रा का स्वरूप प्राप्त हुआ है. जगदेव जी के विशेष परिश्रम के कारण ही यह संभव हुआ.

जगदेव राम जी ने कार्य विकास हेतु उत्तर-पूर्वांचल जैसे दुर्गम क्षेत्रों में भी प्रवास किया. वहाँ की सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया. कल्याण आश्रम ने त्रिपुरा में बसे रियांग बन्धुओं के लिए सहायता हेतु सभी प्रकार के प्रयास किए. एक सामाजिक संगठन के नाते जो-जो करने योग्य था, सब कुछ किया और इस हेतु जगदेव राम जी का बहुत बड़ा योगदान रहा.

सन् 2015 में दिल्ली में ‘भारत की जनजातियों हेतु एक नीति दृष्टिपत्र’ पुस्तक का प्रकाशन हुआ. इस महत्वपूर्ण विषय के बारे में प्रकाशन पूर्व तीन कार्यशालाएं हुई थीं. विभिन्न व्यक्तियों के विचारों को जानने के प्रयास हुए. प्रमुख कार्यकर्ताओं ने चिंतन-मंथन किया और दिल्ली में पुस्तक का प्रकाशन हुआ. इस प्रक्रिया में जगदेव राम जी की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण रही.

जनजाति आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सदस्यों का स्वागत हो या निर्वाचित जनजाति सांसदों का सम्मान इन सभी कार्यक्रमों में जगदेव राम जी उपस्थित रहते थे और जनजाति समाज के बारे में अपने विचार चिंतन स्पष्ट रूप से प्रकट करते थे. श्रद्धेय जगदेव राम जी जनजाति समाज के ऐसे महान विभूति थे जो अपने 50 वर्ष के सामाजिक जीवन में भारत के लगभग सभी जनजाति समाज के लोगों को उनके क्षेत्रों में जाकर मिले थे. ऐसा व्यक्ति भारत में विरला ही होगा. जहाँ – जहाँ प्रवास रहता उस क्षेत्र की जनजातियाँ, उनकी परंपरा, संस्कृति के बारे में उनका अध्ययन और निरीक्षण अद्भुत था. विभिन्न सम्मेलन, अभ्यास वर्गो में दिए भाषणों में इन निरीक्षणों का उपयोग करते थे.

उन्होंने सभी जनजाति समाज को आत्मीयता के साथ जोड़ने का भगीरथ प्रयास किया. जनजाति समाज को हिन्दू समाज के अभिन्न अंग की अनुभूति कराई. विभिन्न ग्रंथों का अध्ययन, समाज का दर्शन एवं सतत गहन चिंतन के कारण समय समय पर कल्याण आश्रम को ही नहीं, वरनं जनजाति समाज को समयोचित मार्गदर्शन किया.

श्रद्धेय जगदेव राम जी विभिन्न अवसरों पर राष्ट्रपति महोदय, विभिन्न राजनीतिक हस्तियाँ, पूज्य संत महात्मा, सामाजिक कार्यकर्ता जैसे शीर्षस्थ महानुभवों को मिलने के बाद भी उतनी ही सहजता से ग्रामीण जनजाति बंधु भगिनियों को मिलते एवं गले लगाते देखा है. उनकी सहजता, सरलता, ऋजुता, निरहंकारिता एवं प्रसन्नता सभी को मोहित करती थी. इसी कारण लोग उन्हें ‘हामर जगदेव राम’ (हमारे जगदेव राम) ही कहते थे.

एक विचारधारा आधारित संगठन के लिए जिन प्रकार के गुणों की आवश्यकता होती है, जगदेव राम जी उन सभी गुणों का एक मूर्तिमंत प्रतीक थे. एक राष्ट्रव्यापी संगठन के अध्यक्ष होते हुए इस पद का जरा भी बडप्पन उनको कभी छू नहीं पाया. स्वभाव में इतनी सहजता और व्यवहार में इतनी सादगी की, उनके स्नेहपूर्ण व्यवहार से सहज रूप में किसी भी परिवार से घुलमिल जाते थे.

अपना जनजाति समाज एक भोलाभाला, निष्कपट, प्रामाणिक एवं सरल स्वभाव का समाज माना जाता है. कल्याण आश्रम के कार्यकर्ताओं ने इसकी अनुभूति कभी ना कभी प्राप्त की है. शायद जनजाति समाज का यही स्वभाव देशभर के हजारों कार्यकर्ताओं का एक प्रमुख प्रेरणास्त्रोत रहा है. एक जनजाति परिवार में जन्म लेने के कारण जगदेव राम जी में भी यह गुण कूटकूटकर भरे थे. लेकिन अध्यक्ष पद और अपने कार्य के बोझ के नीचे उन्होंने अपने इन गुणों को कभी भी निस्तेज नहीं होने दिया. जीवन के अंतिम क्षण तक कार्यकर्ताओं ने वही जगदेव राम जी अनुभव किए, चेहरे पर शिशु जैसे भाव वाले भोले भाले, निष्कपट और निर्मल स्नेह का अमृत पान कराने वाले भोले शंकर!

जगदेव राम जी कल्याण आश्रम के केवल अध्यक्ष नहीं थे, तो संगठन के लगभग ५२ वर्ष के इतिहास के प्रत्यक्ष साक्षी थे. जनजाति समाज में जन्म लेने के कारण वनवासी समाज की परिस्थिति, उनकी मानसिकता भलीभांति जानते थे. दूसरी तरफ कल्याण आश्रम के अध्यक्ष के नाते एक संगठन की भूमिका और उसकी मर्यादाओं को भी अच्छी तरह से समझते थे. शायद यही कारण होगा कि उनके भाषण, चर्चा, संवाद में एक अद्भुत संतुलन देखने को मिलता था. विचारों की इतनी स्पष्टता की कार्यकर्ताओं के सारे संभ्रम दूर करने की क्षमता इनके विचारों मे थी.

‘वनवासी’ शब्द को लेकर चल रहे विवाद पर एक बार चर्चा हुई तो उन्होंने कहा ‘जो यह विवाद निर्माण कर रहे हैं, उनका आपकी विचारधारा का ही विरोध है, ‘वनवासी’ शब्द तो एक बहाना है, आज यह शब्द है तो कल कोई और विवाद खड़ा करेंगे, आप कब तक भागेंगे?’ कल्याण आश्रम में जनजाति समाज का गौरवशाली इतिहास पहली बार सुना तो वह जगदेव राम जी की वाणी से. कितना प्रेरणादायी इतिहास सुनाते थे.

स्व.बालासाहब देशपांडे जी ने जिस कल्याण आश्रम की नींव रखी, वह संगठन जगदेव राम जी के नेतृत्त्व में देश का सबसे बड़ा संगठन हुआ है. कल्याण आश्रम की उपलब्धियों के बारे में जब कभी विचार होगा, तब जगदेव राम जी जैसे उत्तुंग नेतृत्त्व का निर्माण यह सबसे प्रमुख उपलब्धी मानी जाएगी.

स्व. जगदेव राम जी एक ओर जनजाति समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए वनवासियों की भगवान के प्रति दृढ आस्था के साथ उनके भोले मन को अभिव्यक्ति देते रहे, तो दूसरी ओर कल्याण आश्रम के प्रमुख होने के नाते सशक्त मार्गदर्शन करते थे. जिसे पाथेय बना भारत भर के कार्यकर्ता वर्ष भर सक्रिय रहते थे.

15 जुलाई, 2020 को जगदेव राम जी का जीवन प्रवास तो समाप्त हुआ. लेकिन जाने से पहले आचार-विचार और व्यवहार की एक अनोखी विरासत हमारे लिए छोडकर गए. यह बात सही है कि जगदेव राम जी जैसा तपस्वी नेतृत्व बार बार निर्माण नहीं होता. लेकिन उनके रूप में ऐसा देव दुर्लभ नेतृत्व कल्याण आश्रम को प्राप्त हुआ और उनके मार्गदर्शन में कार्य करने का सद्भाग्य देश के हजारों कार्यकर्ताओं को मिला. उनके प्रेरक विचार और स्मृति ही हमें जनजाति विकास के कार्य में प्रेरणा देती रहेगी.

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